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“ बेटा!! आ गया तू.. कहाँ-कहाँ हो आया भारत भ्रमण में..?

“ माँ!! चारो दिशाओं में गया था. देखो! गंगाजी का जल भी लाया हूँ.  आप कहो तो, पिताजी लाये थे वो कलश आधा खाली है उसमे ही डाल दूँ..”

“ नहीं!!  बेटा.. रोज समाचारों में सुनती हूँ कि गंगा में स्वच्छता अभियान चल रहा है, वर्षों पहले तेरे पिता जो लाये वो तू बचा के रखना. कम से कम आगे आने वाली पीढ़ी,  पवित्र गंगाजल तो देख लेगी..”

  

    जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2015 at 9:00pm

उद्गम से ऋषिकेश तक सच में गंगा जी बहुत स्वच्छ  है उसके बाद महानगरों के नजदीक होना प्रदूषित करता है. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सुझाव हेतु आपका आभारी हूँ,

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 1:32pm

जीतू भाई

कथानक बेह्तरीन  है . सन्देश भी अच्छा है . गंगाजल लाने के लिए भारत भ्रमण  अत्युक्तिपूर्ण  लगता है और रिशीक्वेश तक  अभी भी गंगा का जल पवित्र है . सादर .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2015 at 8:52am

आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सदा मनोबल मिलता है, आदरणीय मिथिलेश जी

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 22, 2015 at 10:44pm

आदरणीय जितेन्द्र जी एक और बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 9:19pm

रचना के अनुमोदन और स्वीकारोक्ति हेतु आपका हार्दिक आभारी हूँ,आदरणीय गिरिराज जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 9:17pm

आपके स्नेह हेतु आपका आभारी हूँ, आदरणीय जवाहर जी

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 22, 2015 at 6:58pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , माता जी की बात भी सही है और आपकी कथा भी ॥ हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 22, 2015 at 12:31pm

बहुत ही वाजिब! लहुकथा में आपका कोई जवाब नहीं 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 10:33am

आदरणीया तनूजा जी. रचना को  प्रोत्साहित करती सराहना हेतु आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 10:31am

आप बिलकुल सही कह रहें है आदरणीय मोहन जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

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