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बहुत लगाव था अपने ज़मीन के इस टुकड़े से रघू को , ये आखिरी जो था | पत्नी की बीमारी में एक एक करके सभी जमीनें गिरवी रखता गया था , इस उम्मीद में की जब वो ठीक हो जाएगी तो दोनों मियां बीबी मिलकर , पसीना बहाकर , छुड़ा लेंगें उन्हें | लेकिन जैसे जैसे ज़मीन के टुकड़े कम होते गए , पत्नी की सांसें भी कम होती गयीं |
आखिरी वक़्त में पत्नी ने वचन लिया था कि अब वो किसी भी सूरत में ज़मीन के इस आखिरी टुकड़े को नहीं बेचेगा | जिंदगी किसी तरह गुजर रही थी लेकिन उसकी ज़मीन पर एक उद्योगपति की नज़र पड़ गयी | वहाँ फैक्ट्री लगाने के लिए वो अगल बगल ज़मीनें खरीद रहा था | पर उसके लिए तो वो टुकड़ा अमानत थी किसी को दिए हुए वचन की लिहाज़ा उसने स्पष्ट इंकार कर दिया |
कल उसने पडोसी चाचा के घर टी वी में देखा कि इस नए कानून की बारे में चर्चा हो रही थी | उसने पूछा " क्या अब हमारी ज़मीनें हमारी मर्ज़ी के बिना भी छीनी जा सकती है चाचा "|
चाचा ने गहरी साँस लेते हुए कहा " हमारी जमीने बचती ही कब हैं रघू , लेकिन इस कानून ने तो बची खुची उम्मीदें भी तोड़ दी | शायद किसान के घर में पैदा होना ही हमारा गुनाह है , हम तो लोगों को अन्न देते हैं और लोग हैं कि अपना ही निवाला छीनने पर लगे हैं "|
रघू ख़ामोशी से उठा और अपने घर आ गया | रात बहुत देर तक वो बेचैनी से करवट बदलता रहा | सुबह लोगों ने देखा , रघू अपने खेत में निर्जीव पड़ा था |

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on March 12, 2015 at 5:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम मठपाल जी ..

Comment by विनय कुमार on March 12, 2015 at 5:30pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी..

Comment by Shyam Mathpal on March 12, 2015 at 2:38pm

Aadarniya Vinay Kumar Ji

Aaj ke halat par ek sahi laghu katha . Badhai.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 12, 2015 at 2:34pm

आदरणीय विनय जी ,सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

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