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काल-धारा ...(विजय निकोर)

काल-धारा

मेरा स्नेह तुम्हारी ज़िन्दगी के पन्ने पर देर तक

स्वयं-सिद्ध, अनुबद्ध

हलके-से हाशिये-सा रहा यह ज़ाहिर है

ज़ाहिर यह भी कि जब कभी

अपने ही अनुभवों के भावों के घावों को

विषमतायों से विवश तुम चाह कर भी

छिपा न सकी

हाशिये को मिटा न सकी

मिटाने के असफ़ल प्रयास में तुम

घुल-घुल कर, मिट-मिट कर

ऐंठन में हर-बार कुछ और

स्वयं ही टूटती-सी गई

 

टूटने और मिटने के इस क्रम में

हाशिये में कभी झोल-सा पड़ा दर्द का

कभी उसकी पारमिता,

उसकी दृढ़ता, उसकी गहराई

बढ़ती निखरती तुम्हारे अस्तित्व के गिर्द

ज़िद्दी बेल-सी लिपटती चली गई

 

समय की थिरकती-सिहरती थपथपी

अदृश्य तुम्हारे अश्रुओं की कँपकँपी ...

मानव-सम्बन्ध के सहज आनंद की

पूजा के दिय की लौ -सी

अरुणायित शोभा ...

यह हाशिया भी अब वही हाशिया न रहा

मिटाय-न-मिटते जामुन के पक्के

रंग-से-रंगे कपड़े-सा

तुम्हारे शुद्धतम आँचल-सा विशुद्ध स्नेह मेरा

अब हृदय-प्रकाश तुम्हारा बना, और

गहन विश्वास की तहों में स्नेह तुम्हारा

मेरे हृदय की कमल-पँखुरी में है समाया

 

आत्माओं में बहती-सी लगती है नई उमंग

सोचता हूँ  यह नियति की अनुभूति है या

है यह बहती सुखप्रद प्रतिपल

असामान्य जगत-काल-धारा...

 

             ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 9:17pm

आदरणीय विजय सर आपकी कविताएँ दिल को छू जाती हैं बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

सादर,

Comment by coontee mukerji on May 20, 2014 at 8:06pm

विजय जी.नमस्कार. पिछले आपकी कई रचनाओं को मैं अति व्यस्तता के कारण मीस कर गयी. आज आपकी इस नयी रचना पर दृष्टि पड़ते ही मन गदगद हो गया.....आपकी सारी रचनाएँ जीवन में गुज़रे विभिन्न आयामों के अनुभवों का निचोड़ होता है....एक सरलता, एक मधुरता,कर्णप्रिय जो आपके व्यक्तित्व की मधुरिमा का परिचय लिये चलता है......कालधारा ...आपके गहनतम रचनाओं में से एक है....जैसे जीवन के दर्द को अमृत में घोलकर लिखी गयी हो.....

आत्माओं में बहती-सी लगती है नई उमंग

सोचता हूँ  यह नियति की अनुभूति है या

है यह बहती सुखप्रद प्रतिपल

असामान्य जगत-काल-धारा......इंसान जब अपनी पूरी तैयारी के साथ जब अनंत सफ़र के लिये तैयार होता है तो अपने पीछे एक सुखद पल छोड़ जाताहै.......आपकी रचनाओं में लालित्य के साथ ही एक आनांद भी होता है.....आपको बहुत बहुत साधुवाद.सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 20, 2014 at 5:08pm

आदरणीय निकोर जी

शुद्धतम आँचल सा विशुद्ध स्नेह  किसे मिलता है ?

आपको शत-शत बधाई  I   रचना का स्तर  हमेशा की तरह अन्तरिक्ष को छूता हुआ  I

कृपया ध्यान दे...

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