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गाँव , मसान एवं गुडगाँव

गाँव की फिजाओं में
अब नहीं गूंजते
बैलों के घूँघरू ,
रहट की आवाज.
नहीं दिखते मक्के के खेत
और ऊँचे मचान .
उल्लास हीन गलियां
सूना दृश्य
मानो उजड़ा मसान.
नहीं गूंजती  गांवों में
ढोलक की थाप पर
चैता की तान
गाँव में नहीं रहते अब
पहले से बांके जवान.
गाँव के युवा गए सूरत, दिल्ली और
गुडगांव
पीछे हैं पड़े
बच्चे , स्त्रियाँ, बेवा व बूढ़े
गाँव के स्कूलों में शिक्षा की जगह
बटती है खिचड़ी.
मास्टर साहब का ध्यान,
अब पढ़ाने में नहीं रहता.
देखतें हैं, गिर ना जाये
खाने में छिपकली.
गाँव वाले कहते हैं,
स्साला मास्टर चोर है.
खाता है बच्चों का अनाज
साहब से साला बने मास्टर जी
सोचते हैं,
किस किस को दूँ अब खर्चे का हिसाब.
चढ़ावा ऊपर तक चढ़ता है तब जाकर कहीं
स्कूल का मिलता है अनाज ..
इन स्कूलों में पढ़कर,
नहीं बनेगा कोई डॉक्टर और इंजीनियर
बच्चे बड़े होकर बनेगें मजदूर
जायेंगे कमाने
सूरत, दिल्ली , गुडगाँव
या तलाशेंगे कोई और नया ठाँव.

...... नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 853

Comment

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Comment by वेदिका on April 9, 2014 at 9:16am
बढ़िया विषय पर रचना की आपने। रचना के भाव भी जानदार। मेरे विचार से कविता को और भी समय दिया जा सकता था। शुभकामनाएं आपको
सादर
Comment by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 9:02am

आ. अरुण श्रीवास्तव जी आपका हार्दिक आभार.. कुछ खास पंक्तियों को अगर आप इंगित कर देते तो सहायता होती, मैं उसे ठीक कर लेता .. बहरहाल रचना पसंद करने एवं सराहना के लिए अनेकानेक धन्यवाद.  

Comment by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 9:00am

आ. लक्ष्मण धामी साहब आपका हार्दिक आभार .. 

Comment by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 9:00am

आपका आभार आ विजय निकोरे साहब..

Comment by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 8:59am

आ. जीतेन्द्र गीत जी हार्दिक आभार.

Comment by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 8:59am

आ. शिज्जू शकूर जी हार्दिक धन्यवाद..

Comment by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 8:58am

आपका हार्दिक आभार आदरणीया  कुंती मुख़र्जी जी 

Comment by Arun Sri on April 8, 2014 at 1:41pm

//गाँव के स्कूलों में शिक्षा की जगह  बटती है खिचड़ी.//

ये स्थिति कचोटती है बहुत ! लेकिन यथार्थ है और किया भी क्या जा सकता है सारे करने वाले तो सूरत, दिल्ली , गुडगाँव चले गए ! प्रभावशाली कविता ! वैसे एक ही पंक्ति को अनावश्यक कई टुकड़ों में न बांटते तो पढ़ना थोड़ा और आसान हो जाता !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:32pm

आदरणीय नीरज भाई , बहुत सुन्दर रचना लगी , कमो बेश हर राज्य के  हर ग्रामीण विद्यालय का यही हाल है ,  एक कड़वी सच्चाई बयान की है आपने , बधाइयाँ आपको .

Comment by vijay nikore on April 8, 2014 at 12:23pm

मैंने गांव के अन्य स्कूलों का भी यही हाल सुना है। काश, हम इसको बदल सकें।

रचना के लिए बधाई।

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