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लफ़्ज़ कब जज़्बात को पूरे पड़े ? ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122        212 ( पूरा ) 

 

इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख

बाग  मे  पानी के  फौव्वारे भी देख

 

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 

तू अमा में चाँद  खातिर , ज़िद  न कर        

आ कभी आकाश में तारे भी देख

सिर्फ  भारी रह सकूँ , ये सोच  मत  

कैसे उड़ते, हलके  गुब्बारे  भी  देख  

 

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 

जीत  से  कोई  नही  सीखा   कभी

ज़िन्दगी से हम कहाँ  हारे ,भी देख

 

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख  

 

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:07am

वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी

क्या खूब कहा आपने

 

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 

जीत  से  कोई  नही  सीखा   कभी

ज़िन्दगी से हम कहाँ  हारे ,भी देख

 

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख 
....... बहुत सुन्दर गजल , हार्दिक बधाई

Comment by नादिर ख़ान on February 20, 2014 at 12:15am

बहुत खूब आदरणीय गिरिराज जी, कई रंग दिखे इस गज़ल मे ..... दिल से बधाई स्वीकार करें ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2014 at 10:30pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 19, 2014 at 9:53pm

जीत  से  कोई  नही  सीखा   कभी

ज़िन्दगी से हम कहाँ  हारे ,भी देख.............यह शेर खूब पसंद आया

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2014 at 7:05pm

आदरणीय बैद्य नाथ भाई , गज़ल की तारीफ करने केलिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2014 at 7:04pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना मेरे लिये तमगे से कम नही है , आपका तहे दिल से  शुक्रिया ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये  रखें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2014 at 6:55pm

आदरणीय नीरज नीर भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on February 19, 2014 at 10:41am

बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल हुई है आदरणीय ...

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  !

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख......बेमिसाल ! वाह ..वाह और वाह !

 

 

Comment by vijay nikore on February 19, 2014 at 10:12am

//

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 

जीत  से  कोई  नही  सीखा   कभी

ज़िन्दगी से हम कहाँ  हारे ,भी देख

 

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख  //

 

 

बहुत अच्छी गज़ल बनी है। आपको  बधाई, भाई गिरिराज जी।

Comment by Neeraj Neer on February 19, 2014 at 8:42am

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 .बहुत खूब सकारात्मकता भारती हुई सुन्दर ग़ज़ल.

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