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लघुकथा : मतिमूढ़ (गणेश जी बागी)

संता लगभग एक साल बाद अपने गाँव लौट रहा था । बसंता इतना खुश था कि जो भी वेंडर ट्रेन मे आता वो कुछ न कुछ खरीद लेता, माला, गुड़िया, चूड़ी, बिंदी, सोनपापड़ी और भी बहुत कुछ । पैसे देने के लिए हर बार वह नोटों से भरा पर्स खोल लेता । अगल बगल के यात्रियों ने उसे डांटा भी, मगर भोला भला बसंता हँस कर बात टाल जाता ।    

आख़िर वही हुआ जिसका डर था, चलती ट्रेन में किसी ने उसका रुपयों से भरा पर्स निकाल लिया । बसंता ज़ोर ज़ोर से रोने लगा, तब सहयात्रिओं की आवाज़ें हर तरफ गूंजने लगीं । 

"देखा, इसीलिए मैं तुम्हें डाँट रहा था, और खोलो सब के सामने पर्स, करवा लिया न हजारों रुपयों का नुक्सान !
"मैं रुपयों के लिए नहीं रो रहा हूँ बाबू जी, पर्स में मेरी स्वर्गवासी माँ की फोटो थी, मेरे पास उसकी और कोई फ़ोटो भी नहीं है" 
तभी किसी की आवाज़ आई "मतिमूढ़ कही का ....."

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 4, 2013 at 11:13pm

क्या कीमत है भावनाओं की ? बस मतिमूढ़ता ही बचाये रखती है सम्बन्ध.

बधाई इस संप्रेषण पर. शुभ-शुभ

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 4, 2013 at 10:43pm

उन्नीसवीं शताब्दी जैसी सोच रखने वाला  भोला भाला,  इक्कीसवीं शताब्दी के चतुर सुजानों की नज़र में ( जिनके लिए पैसा ही सब कुछ  है )  "मतिमूढ़" कहलाने लायक ही था बेचारा । अच्छी कथा की बधाई और दीवाली की शुभकामना  गणेश भाई।  

Comment by Abhinav Arun on November 4, 2013 at 4:55am

सच है आज सीधा सरल आदमी चतुर  सुजानों की नज़र में मति मूढ़ ही है , समय के साथ साथ मानक बदले हैं ...एक भावपूर्ण कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय श्री बागी जी , दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2013 at 4:42pm

एक मासूम की भावनाओं की क्या अहमियत है आज के संवेदन हीन इंसानों के बीच ,तभी तो मतिमूढ  हुआ उनके लिए... जाकी रही भावना जैसी जेहि मूरत देखि तिन तैसी ...दिल को छू गई लघुकथा बधाई! आपको.दिवाली की आपको व् आपके परिवार को हार्दिक बधाई   


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2013 at 2:55pm

आदरणीय निगम साहब, आपकी टिप्प्णी पढ़ मन मंत्रमुग्ध है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2013 at 2:54pm

आदरणीया वंदना जी, उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी हेतु आभार प्रेषित है । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2013 at 2:53pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपकी टिप्प्णी एक सबल प्रदान करती है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2013 at 2:52pm

आभार आदरणीय चंद्रशेखर पाण्डेय जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2013 at 2:51pm

आदरणीया कुंती मुखर्जी जी, आपकी टिप्प्णी पढ़ अच्छा लगा, आभार व्यक्त करता हूँ । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2013 at 2:50pm

आपकी सकारात्मक टिप्प्णी हेतु ह्रदय से आभार आदरणीय विजय निकोर जी । 

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