For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीप हमने सजाये घर-द्वार हैं  

फिर भी संचित अँधेरा होता रहा

मन अयोध्या बना व्याकुल सा सदा

तन ये लंका हुआ बस छलता रहा

 

राम को तो सदा ही वनवास है

मंथरा की कुटिलता जीती जहाँ

भाव  दशरथ दिखे बस लाचार से

खेल आसक्ति ऐसी खेले यहाँ

 

लोभ धर रूप कितने सम्मुख खड़ा

दंभ रावण के जैसा बढ़ता रहा

 

धुंध यूँ वासना की छाने लगी

मन में भ्रम इक पला, सीता को ठगा

नेह के बंध बिखरे, कमजोर हैं

सब्र शबरी का देता है अब दगा

 

अर्थ रिश्तों के आखिर बदलने लगे

शूल सुग्रीव के दिल में चुभता रहा

 

अर्थ जीवन को दें कुछ हम इस तरह 

द्वेष अब ना रहे इस संसार में 

रात काली अमावस की जो मिटे

सूर्य ऐसा उगे हर व्यवहार में

 

मन अयोध्या रहे तन हनुमान सा

भाव मन में यही बस पलता रहा 

              -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 29, 2013 at 11:45am

आदरणीय नीरजजी आपने मानवीय दुर्गुणों को अच्छे से रेखांकित किया है, सादर साधुवाद

Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:13am

अर्थ जीवन को दें .............बहुत सही बात कही है अपने आदरणीय भाई बृजेश जी।   इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई व् साधुवाद  ///सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 29, 2013 at 10:49am

 अर्थ जीवन को दें कुछ हम इस तरह 

द्वेष अब ना रहे इस संसार में 

रात काली अमावस की जो मिटे

सूर्य ऐसा उगे हर व्यवहार में

बहुत ही सुंदर सार्थक, अपने अंतर्मन को निर्मल किये बिना, त्यौहार मनाना, निरर्थक है

रचना पर ढेरों बधाई आदरणीय बृजेश जी

Comment by Arun Sri on October 29, 2013 at 10:38am

दीपावली आने वाली है ! साफ़ सफाई करने का त्यौहार है तो आत्म मंथन का इससे उचित अवसर क्या होगा ! अपना अंतर को स्वच्छ करे पहले ! इसी सन्देश के साथ ये कविता आखिरी में कुछ मानक भी स्थापित कर जाती है ! बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय !

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 29, 2013 at 10:10am

मन अयोध्या रहे तन हनुमान सा॥  सचमुच ऐसा हो जाय यदि कोई सच्चा गुरु मिल जाय। सुंदर पंक्तियों की हार्दिक बधाई बृजेश भाई। 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 29, 2013 at 10:03am

वाह उत्कृष्ट भाव सुन्दर रचना हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service