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"डॉ साहिब, हमें बेटी नहीं चाहिए. आप बहू का एबॉर्शन कर दीजिए."
"ठीक है, आप लोग कल शाम मेरे प्राइवेट क्लिनिक पर आ जाईए".
"कल नहीं डॉ साहिब, हम लोग अगले हफ्ते ही आ पाएंगे"
"अगले हफ्ते क्यों ?"
"क्योंकि अभी नवरात्रे चल रहे हैं "

(मौलिक एवँ अप्रकाशित्)

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Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:21pm

वाह..... क्या खूब लघुकथा है आदरणीय योगराज जी.... किस प्रकार से मात्र पाँच पंक्तियों में आपने इस प्रकार की कुंठित मानसिकता रखने वालों के स्वरूप को परोसा है.... बधाई हो....

Comment by Sachin Dev on October 5, 2013 at 1:52pm

उफ्फ ये इस समाज के दोहरे मापदंड ..... एक तरफ माता की पूजा दूसरी ओर अजन्मी कन्या हत्या का दोष ..... आदरणीय ने चंद पंक्तियों मैं ही समाज मैं व्याप्त इस नकाबपोशी से बखूबी पर्दा हटाया है ..... हार्दिक आभार ! 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 5, 2013 at 12:08pm

देवी (कन्या) की पूजा करते पर स्वयं कन्या नहीं चाहते | सार रूप में पर व्यापक सन्देश देती सुन्दर और सामयिक लघु कथा 

के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्री योग राज प्रभाकर भाई जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 5, 2013 at 11:50am
आदरणीय योगराज सर , वाह !!! इसे कहते हैं गागर मे सागर !!! चार लाइनों मे आपने इतना कुछ कह दिया , बहुत सुन्दर !!!! बहुत बधाई !!
Comment by D P Mathur on October 5, 2013 at 11:37am

आदरणीय योगराज प्रभाकर सर नमस्कार, आपने मात्र चन्द शब्दों में ही आधुनिक कहलाने वाले समाज के कुछ लोगो की मानसिकता को उजागर कर दिया है। सच ,ढकोसला करना और सच्ची श्रद्धा में अन्तर होता है अच्छे व्यंग के लिए आपको अनेकों बधाई ।

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