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कन्या पूजन -- लघु कथा

 उमा दादी ने जब बड़े प्यार से सभी कन्याओं को चरण धो धो कर जमीन पर बिछे आसन पर बैठाया और रोली कुमकुम का टीका लगा कर  सभी कन्याओं को चुनरी ओढ़ाई और भोजन परोस कर वही बगल मे हाथ जोड़ कर बैठ गईं - “भोजन जिमों मेरी माता रानी ।"

अचानक उनके बीच मे बैठी उमा दादी की पोती उठ खड़ी हुई  - “ आप गंदी हो दादी ! आज कितने प्यार से खिला रही हो रोज तो माँ को कहती हो बेटी पैदा करके रख दी । अब बताओ अगर बेटियाँ नहीं पैदा होती तो तुम कन्या कहाँ से लाती और किसको खिलाती, कैसे कन्या पूजन करती ?"

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by aman kumar on September 23, 2013 at 8:22am

सही बात है अधिकतर देखा गया है की बालिका जन्म होने  मे की नारी को तकलीफ होती है वो चाये सास हो , या कोई और अर्थात नारी ही नारी की दुर्दशा मे सहायक होती है ........

Comment by वेदिका on September 23, 2013 at 12:33am

और दादी के बोल गायब! बहुत खूब 

बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 12:16am
आ0 मीना जी , सावित्री जी आपका आभार ।
Comment by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 12:15am
आदरणीय सौरभ जी आपका तहे दिल से आभार ।
Comment by Savitri Rathore on September 22, 2013 at 5:31pm

अन्नपूर्णा जी,वर्तमान में बेटी को लेकर जो दोहरी मानसिकता दर्शायी जा रही है,आपकी कहानी उस पर प्रहार करती है,सटीक लेखन हेतु बधाई।

Comment by Meena Pathak on September 22, 2013 at 7:51am

ऐसा ही होता है जब नवरात्रे आती है|  जो लोग बेटी के जन्म पर मुंह बनाते हैं वही कन्या ढूंढते फिरते हैं, ना जाने कब आँख खुलेगी लोगों की | सुन्दर लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें आ० अन्नपूर्णा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 22, 2013 at 1:06am

दादी को मात्र गंदी कह कर बेचारी पोती रह गयी, जबकि उस पोती की माँ बिना बोले कितनी वाचाल होगी ! लकिन  कहा क्या जाये !

Comment by annapurna bajpai on September 22, 2013 at 12:44am
आदरनीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार ।
Comment by annapurna bajpai on September 22, 2013 at 12:44am
आदरणीय जितेंद्र जी आपका आभार ।
Comment by annapurna bajpai on September 22, 2013 at 12:43am
आ0 महिमा श्री जी आपका हार्दिक आभार ।

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