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संत लीला ( छ्न्द का प्रथम प्रयास )

संत लीला

******************

वेद पुराण वाचते करते गीता पाठ ।

बाबाजी के देखिये शाही ठाठ बाठ । 

शाही ठाठवाठ मे, कोई कमी न आये  ।

वैरागी बन के बाबा, दौलत खूब कमाये । 1।

 

चार बार चन्दन घिसे, छिडके गंगा नीर ।

देख के नारी मोहनी, बाबा भये अधीर ।

बाबा भये अधीर के, भूले दुनियादारी ।

मोहमाया के जाल मे, फँस गये बृहम्चारी ।2।

ठुमक ठुमक के नाचते, छेडे लम्बी तान ।

सत संगत मे बाटॅते, जो सँयम का ज्ञान ।

जो सँयम के ज्ञान को, गये खुद ही भूल ।

ज्ञानपीठ मे कर गये, बाबा छोटी भूल ।3।

 

दर्शन का चन्दा लगे भेंट करे धनवान ।

झोली भर भर लाते, काला विदेशी दान ।

काला विदेशी दान को, बाबा करे सफ़ॆद

बाबाजी की दाढी मे, छुपे हजारो भेद ।4।  

 

खोल दुकान धरम की, बाबा करे व्यापार ।

नेता गुंडा चोर सब, होत इनके साझेदार ।

इनके साझेदार की, कथा अनंत अविराम ।

एक गये दुजे मिले, ऐसे ठोंगी साधुराम ।5।  

 

देख चरित्र संत का, लोग भये हैरान ।

अब साधु के भेष मे, वास करे शैतान।

वास करे शैतान की, आंखे अपनी खोल।

ऐसे संत फकीर का, कर दो डब्बा गोल |6|  

 

एक हाथ मुन्नी धरे, एक मे शीला होये ।

दिन मे माला राम की, रात मे लीला होये ।  

रात मे लीला होये की, सुर सुरा और काम ।

इति श्री लीला संत की सब को मेरा प्रणाम |7|

मौलिक व अप्रकाशित 

 04/09/13

  

 

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Comment

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Comment by बसंत नेमा on September 5, 2013 at 10:23am

आ0 राम शिरोमणी जी .. बहुत बहुत धन्यवाद . आप के  दिये मार्ग दर्शन का पालन करुंगा । आपके बहुमुल्य समय के लिये हार्दिक् धन्यवाद .. 

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 6:29am

अच्छा प्रयास है आपका। आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 3:26am

पाखंडियों का भेद खोलती हुयी सुंदर छंद रचना, हार्दिक बधाई , आदरणीय बसंत जी

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:50pm

एक हाथ मुन्नी धरे, एक मे शीला होये ।

दिन मे माला राम की, रात मे लीला होये ।  

रात मे लीला होये की, सुर सुरा और काम ।

इति श्री लीला संत की सब को मेरा प्रणाम |7|........... बाबाजी का बहुत सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आप ने, दुर्भाग्य है कि ये हमारे ही देश में पाए जाते हैं ...... सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 11:33pm

देख चरित्र संत का, लोग भये हैरान ।

अब साधु के भेष मे, वास करे शैतान।

वास करे शैतान की, आंखे अपनी खोल।

ऐसे संत फकीर का, कर दो डब्बा गोल |6|

प्रिय बसंत जी ..सुन्दर ..सामयिक छंद बद्ध रचना ...जनमानस को चेताती हुयी आँखें खोलें लोग तो आनंद और आये
बधाई
भ्रमर ५

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 10:54pm

एक हाथ मुन्नी धरे, एक मे शीला होये ।

दिन मे माला राम की, रात मे लीला होये ।  

रात मे लीला होये की, सुर सुरा और काम ।

इति श्री लीला संत की सब को मेरा प्रणाम |.....................................  कितनी सही बात लिखी है , बहुत बधाई आपको । 

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 9:07pm

प्रयास तो  सुन्दर हुआ है लेकिन बहुत कुछ सुधार की आवस्यकता है ///एक बार नियम  पढ़ ले आदरणीय भाई बसंत जी ///शुभकामनाएं 

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