For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनाद्यानंत  आकाश में तैरते 

पारदर्शी गोलाकार 
अविरल निर्विकार 
असंख्य सूक्ष्म कण ...
स्पर्श कर सम्पूर्ण सृष्टि 
चले आते हैं मेरे पास
प्रति क्षण -
मेरे संस्पर्श को ...
और लिए जाते हैं, गुपचुप 
मुझमे से 
मेरा ही सुरभित नेह अंश,
पूरे ब्रह्माण्ड में बिखराने ...
और मैं 
पारदर्शी निगाहों में प्रेमाश्रु लिए 
एकटक निहारती हूँ 
प्रकृति की सम्पूर्णता को,
अक्सर करती
अनकही अनसुनी अनगिन बातें ...

 

मौलिक और अप्रकाशित  

डॉ० प्राची

Views: 884

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 13, 2013 at 1:33pm

आदरणीय विजय जी 

रचना को आपने जो शब्द दिख रहे हैं उस परिधि में समझा...आपकी आभारी हूँ.

इतना ज़रूर कहूँगी कि जिन सामान्यतया अदृष्ट सूक्ष्मकणों के माध्यम से प्रकृति के कण कण से हमारा एकीकार होता है, उनका बोध होने पर सृष्टि का कोइ भी तत्व अपने से भिन्न नहीं लगता....  तब हर कण दृश्य अदृश्य स्थूल सूक्ष्म सबमें एकत्व को अंगीकार कर जो प्रेम निस्सृत होता है वह स्वयं ही प्रकृति के हर अवयव के साथ एक अनकहा अनसुना सम्बन्ध जोड़ देता है..जिसे संवाद के लिए मन में विचारों की भी ज़रूरत नहीं..वह विचारशून्यता ही संवाद से बढ़ कर होती है................................इन्ही सनातनी भावों को अभिव्यक्त करने की चेष्टा की गयी है इस रचना में.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 13, 2013 at 1:18pm

प्रस्तुति पसंद करने के लिए आभार आ० केवल प्रसाद जी 

Comment by vijay nikore on July 13, 2013 at 10:00am

//

और लिए जाते हैं, गुपचुप 
मुझमे से 
मेरा ही सुरभित नेह अंश,
पूरे ब्रह्माण्ड में बिखराने ...
और मैं 
पारदर्शी निगाहों में प्रेमाश्रु लिए 
एकटक निहारती हूँ 
प्रकृति की सम्पूर्णता को,//
 
मैंने इन कोमल सुन्दर भावों से यह अभिप्राय लिया....
 
... कि जब हम अपना सुवासित स्नेह सँसार में बिखेरते हैं, सँसार के साथ बाँटते हैं तो हमें स्वयं को सारा ब्रह्माण्ड मुकम्मल लगता है , प्रकृति सम्पूर्ण लगती है, और इस हर्षोन्माद में हम प्रकृति के सौंदर्य को देख स्वय़ं से बातें करते हैं, कुछ गुनगुनाते रहते हैं।
 
आपका भी इस कविता में इस अभिव्यक्ति से यही अभिप्राय था क्या, आदरणीया?
सादर,
विजय
 
 
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 10:52pm

आ0 प्राची मैम जी,  वाह! अज्ञेय चैतन्य का सजीव चित्रण। अतिसुन्दर एवं लाजवाब प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:47pm

//प्रकृति के साथ मन के इस भावपूर्ण रिश्ते की कल्पना ने मन को नयी सोच दे दी है //

यह पंक्ति लिख आपने इस रचना के होने के प्रयोजन को सार्थकता प्रदान की है आदरणीय डी पी माथुर जी 

हृदय से आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:45pm

सम्पूर्ण सृष्टि के लिए निस्सृत प्रेम भाव को संस्पर्श करने पर पृथ्वी सच में नया ग्रह ही लगती है.. :)))

हार्दिक धन्यवाद प्रिय राम जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:43pm

हृदय की सूक्ष्म अतिसूक्ष्म अनुभूति कह, रचना की तह को स्पर्श करने के लिए मैं आपकी आभार हूँ आ० पंकज त्रिवेदी जी 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:41pm

रचना आपको पसंद आयी आपका आभार आ० लक्ष्मण जी 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:41pm

रचना पर आपकी सराहना के लिए ह्रदय से धन्यवाद आ० विजय जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:40pm

अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० सुमित नैथानी जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service