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साथी!
जिस राह पे चलकर तुम जाते
वह राह मनचली
क्यों मुड़ के लौट नही आती ...

ये बैरन संध्या
हो जाये बंध्या
न लगन करे चंदा से
न जन्में शिशु तारे
बस यहीं ठहर जाये

ये शाम मुंहजली
जो मुड़ के लौट नही पाती ...

श्वासों के तार
ताने पल पल
न टूट  जायें
ये अगले पल
ले जाओ दरस  हमारा
दे जाओ दरस तुम्हारा
यह लिखती पत्र पठाती

यह राह मनचली
जो मुड़ के लौट नहीं पाती ...

ये राह दिवानी है
हमारे पिया गये जिस पर
न लौटे अब तक हाय
हमारा पिया हिरानी है
तेरी रज लूँ मै साथे!
मिला दे हमको पाथे
विनय सुने न हाय

हँसे जाती पगली
यह राह मनचली 
जो मुड़ के लौट नही पाती ...

तेरा गाली से श्रंगार करूं
बड़ा निठुर व्यवहार करूं
 खो दूँ तुझको
खुरपी लेकर फरुआ से
 महा प्रहार करूं
न ये न करना भोली
री! राह करे है ठिठोली
देखा तो पिया खड़े सम्मुख
वह भूल गयी सब वियोग दुःख 
ले रही बलैयाँ सैयाँ की
करती राह की कजली

यह राह मनचली
जो मुड़ के लौट यहीं आती ...

                             गीतिका 'वेदिका'   

 "मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 7:49am

बैठी रह, भोली.. यह राह लौटा लायी पियऊ को तो यही सम्मिलन भी करा देगी.. .

एक अच्छी रचना, आदरणीया, जो विशेष परिस्थितियों को सहृदयता से साझा करती है.

बधाई. प्रयासरत रहें.

Comment by MAHIMA SHREE on June 5, 2013 at 11:58pm

 

नमस्कार गीतिका जी .. बहुत ही भावमय अभिव्यक्ति ..बहुत -२ बधाई आपको

Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 11:44pm

रचना मुक्त कंठ से सराहने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद भैया राम शिरोमणि जी! 

आभार जितेन्द्र जी!
Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 11:35pm

बहुत सुन्दर वाह वाह हार्दिक बधाई आदरणीया गीतिका जी  ///सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 10:54pm
आदरणीया...गीतिका जी, सह्रदय आभार आपका "शुभकामनाऐं स्वीकार करें..."
Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 10:48pm
आदरणीय आबिद अली जी! आभार 
रचना तब ही सार्थक होती है जब पाठक के मन को छुए ...नई तो अपनी अपनी रचना हर रचनाकार को भली ही लगती है। 
मेरी रचना ने आपके मन को छुआ ...सार्थकता मिली। 
साभार   
Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 10:46pm
धन्यवाद आदरणीय संदीप भाई जी!
इस बार की पोस्ट में सबकी अतुकांत और छन्दमुक्त रचना देखि। आपकी रचना देखी तो मै भी अनायास ही प्रेरित हो उठी एक छन्दमुक्त रचना प्रेषित करने हेतु। श्रेय आपको ही ...
सादर गीतिका   
Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 10:43pm
आदरणीय जितेन्द्र जी! आप ने रचना पढ़ कर जो विचार दिये ...मेरी रचना सार्थक हुयी। अपनी समीक्षा से अवगत कराते रहिये 
सादर गीतिका वेदिका  
Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 10:41pm
आदरणीय लक्ष्मण जी! आपकी स्नेह भीनी प्प्रतिक्रया से 
हुयी तसल्ली 
और पिया की गली 
सच में लगे भली 
सादर वेदिका 
Comment by वेदिका on June 5, 2013 at 10:38pm
आदरणीय आशुतोष जी! बधाई देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका। 
कृपा बनाये रखिये  

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