For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाहर बहुत बर्फ है

तुम्हारे देश के उम्र की है
अपने चेहरे की सलवटों को तह करके
इत्मीनान से बैठी है
पश्मीना बालों में उलझी
समय की गर्मी
तभी सूरज गोलियां दागता है
और पहाड़ आतंक बन जाते हैं
तुम्हारी नींद बारूद पर सुलग रही है
पर तुम घर में
कितनी मासूमियत से ढूंढ़ रही हो
कांगड़ी और कुछ कोयले जीवन के
तुम्हारी आँखों की सुइयां
बुन रही हैं रेशमी शालू
कसीदे
फुलकारियाँ
दरियां ..
और तुम्हारी रोयें वाली भेड़
अभी-अभी देख आई है
कि चीड और देवदार के नीचे
झीलों में खून का गंधक है
और पी आई है वह
पानी के धोखे में सारी झेलम
अजीब सी बू में
मिमियाती ...
किसी अंदेशे को सूंघती
कानों में फुसफुसाना चाहती है
पर हलक में पड़े शब्द
चीत्कार में कैद
सिर्फ बिफरन बन
रिरियाते हैं ...
तुम हठात
अपनी झुर्रियों में
कस लेती हो उसे
लगता है
बाहर बहुत बर्फ है !


अपर्णा

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aparna Bhatnagar on September 23, 2010 at 10:56am
Thanks! subodh ji..
Comment by Aparna Bhatnagar on September 23, 2010 at 8:09am
सौरभ सर, आपकी टिपण्णी हमेशा की तरह मनोबल प्रदान करती हुई ..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 23, 2010 at 3:34am
अपर्णा, कहना-लिखना आसान नहीं, उससे आगे, समझाना और भी मुश्किल. ठीक ही कहा-
लगता है
बाहर बहुत बर्फ है !

सिमटी-गुमसी, झुर्रियों से अँटी, ’देश’ की उम्र वाली एक अन्यमनस्का के निर्लिप्त जीवन के मनोविज्ञान को किस आसानी से प्रस्तुत किया है तुमने.. इस प्रतीति को नमस्कार-
"..सूरज गोलियां दागता है
और पहाड़ आतंक बन जाते हैं
तुम्हारी नींद बारूद पर सुलग रही है
पर तुम घर में
कितनी मासूमियत से ढूंढ़ रही हो
कांगड़ी और कुछ कोयले जीवन के"

और सुनो, मैं उन ’रिरियाने’ वाले शब्दों को फिर-फिर समझना चाहूँगा.. क्या सँवारा है, भाई!.. अभिनन्दन.
Comment by Aparna Bhatnagar on September 21, 2010 at 6:30pm
Thanks! subodh ji..
Comment by Subodh kumar on September 21, 2010 at 5:16pm
sunder.. bahut sunder ! achchi kavita ke liye aapko badhaiyaan..
Comment by Aparna Bhatnagar on September 21, 2010 at 5:15pm
Thanks! @ashish ji..
Comment by आशीष यादव on September 21, 2010 at 4:21pm
अपर्णा जी आपने लाजवाब रचना की है| उपमाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति| बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर|
Comment by Aparna Bhatnagar on September 21, 2010 at 2:42pm
माफ़ करें गुलज़ार जी के लिखे गीत सुने हैं पर उनकी रचनाएँ पढ़ने का मौका नहीं मिला ... आपने प्रेरित किया है ...
वैसे यदि किसी के असर से कविता निकल पड़े तो कविता लिखने का कोई अर्थ नहीं रह जाता . आप इसे हमारी तल्खी न समझें पर गुलजारी है ये स्वीकार करना मुश्किल है ... बतौर यदि कोई कविता किसी वाद से प्रेरित होकर लिखी गयी तो उसका दायरा सीमित हो जाता है ...
Comment by विवेक मिश्र on September 21, 2010 at 2:36pm
/झीलों में खून का गंधक है
और पी आई है वह
पानी के धोखे में सारी झेलम/

गुलजारी असर साफ़ झलकता है अपर्णा जी.. बहुत-बहुत बढ़िया.
Comment by Aparna Bhatnagar on September 21, 2010 at 9:41am
Thanks! Naveen ji..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
21 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
34 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service