For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम पंछी एक डाल के

Disclaimer:यह कहानी किसी भी धर्म या जाती को उंचा या नीचा दिखाने के लिए नहीं लिखी है, यह बस विषम परिस्थितियों में मानवी भूलों एवं संदेहों को उजागर करने के उद्देश्य से लिखा है. धन्यवाद.

बात कुछ बीस साल पुरानी है. इलाहाबाद के अतर्सुइय इलाके में बहुत लोगो की तरह ही पंडित दीना नाथ और मौलाना नजरूल भी रहते थे, और बहुत गहरे दोस्त थे. पंडित जी संस्कृत स्कूल में अध्यापक के साथ साथ वहीँ के हनुमान मंदिर में पुजारी थे. मौलाना साहब पास की मस्जिद में ही औलिया थे, बच्चे दोनो के ही बड़े हो गए थे और उनकी दुकाने थी.

.

दोनो ही परिवारो में बड़ा मेल जोल था और एक दूसरे के घर आया जाया करते थे. मौलवी साहब होली दिवाली की बधाइयाँ और मिठाइयाँ कभी नहीं छोड़ते थे. दीना नाथ जी का परिवार भी शायद ही कभी ईद की सिवैयां छोड़ा हो. हाँ पंडित जी नहीं खाते थे, पर शायद लोगो के पीठ पीछे पंडित जी ने चखी तो होगी ही. कभी न कभी नजरूल साहब ने दोस्ती की कसमे खिलाये ही होँगे जवानी के दिनो में.

.

पर पिछले दो तीन महीनो से इलाहाबाद में बहुत तनाव चल रहा था. बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के आस पास का समय रहा होगा. जत्थे भर भर कर भीड़ दक्षिण और पश्चिम भारत से इलाहाबाद के रास्ते अयोध्या जाती थी. कई बड़े लोगो ने उनके खाने पीने की व्यवस्थाये भी कर रक्खी थी. इन्ही की लालच में इलाहाबाद से सटे गावो से भी लोग आ रहे थे और वहीँ सड़को पर ही सोते थे. ये शहर बहुत शांत और सुस्त किस्म का है, मगर ऐसी भीड़ आ जाने से बहुत हलचल बढ़ गई. इन सब को नियंत्रित करने के लिए भारी मात्रा में पोलिस भी तैनात थी, और गाहे बगाहे भगदड़ इत्यादि आम बाते हो गई थी. और यह सब कुछ स्थानीय निवासियो के लिए कौतुहल और परेशानी का केंद्र बना हुआ था.

.

पंडित जी का छोटा लड़का 'गुड्डू' थोडा निकम्मा था, इधर उधर घूमता रहता, और आज कल ऐसे लोग के साथ घूम रहा था जिन्हें अब तक समाज में लफंगो की संज्ञा दी जाती थी. लेकिन कुछ दिनो से हिन्दुओ का सिपाही कहा जा रहा था. कुछ काम-धाम न होने की वजह से ये लोग बस इधर उधर घूम के मार-पीट, छेड़-छाड़ किया करते थे. लड़का हाथ से निकल चुका था.

.

इधर गुड्डू की हरकतो की वजह से आजकल दोनो परिवारो के बीच आना जाना कम हो गया था. बस बच्चे ही कभी कभी क्रिकेट खेलने निकलते थे. पर माएं 'पढना नहीं है क्या?' की उलाहना देते हुए बुला लेती थी. और कल तो हद ही हो गई. मोहल्ले के एक क्रिकेट मैच में मौलवी साहब के बड़े लडके जावेद पर हाथ उठा दिया. काफी कहा सुनी हुयी. उसमे हिन्दू-मुसलमान जैसे शब्द भी इस्तेमाल किये गए. किसी को कुछ चोट तो नहीं आई पर दिलो के बीच दूरियां बहुत बढ़ गई. वक्त बहुत बुरा था. सभी लोग एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहे थे.

.

शायद जनवरी का महीना था. ठण्ड में सडके वैसे भी छह सात बजे खाली हो जाती है. और ऊपर से ऐसा माहौल. दूकानदार अपना अपना सामान समेट ही रहे थे, की पता नहीं कहाँ से कर्फू लगने की अफवा आ गई.. लोग तो ज्यादा नहीं थे पर दुकानदारो में अफरातफरी मच गई. दो मिनट में ही, पचास एक लोगो की भीड़ भागी चली आ रही थी. और ये अफवाह नहीं थी. कुछ 10 घोड़े और आठ दस पुलिस वाले भीड़ को तितर बितर करने के प्रयास में हडकंप मचा रहे थे.

.

पंडित जी भी भागे भागे जा रहे थे. काफी घबराये थे. इतने में मौलवी साहब का छह साल का नाती सड़क पर दिखा. उन्होने 'नजरूल! जावेद!' की कई आवाजे दी, पर कोई उत्तर ना आता देख लडके को अपनी गोद में उठा लिया और गल्ली से अन्दर की तरफ घुस गए.

.

रात के दस बज चुके थे. सिर्फ पोलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई पड़ रहा था. मौलवी साहब अपने परिवार के साथ घर के आहाते में थे. जावेद और उसका लड़का घर पर नहीं था. सब परेशान थे. तभी जावेद तीन चार लोगो के साथ हाफते हुए घुसा. उनके साथ गुड्डू भी था पर उसके हाथ और मुह बधे थे. अपने बच्चे के बारे में रोते हुए उसने कहा कि "इन लोगो ने पंडित जी को मेरा लड़का लेके किसी गल्ली में घुसते हुए देखा है". उसके साथ जो लोग थे उनमे से एक ने कहा की "हो न हो, पंडित जी की नियत में खोट है. अगर जावेद के लडके को कुछ हुआ तो हम उसका बदला गुड्डू से लेंगे". नजरूल गुड्डू का हाथ खोलने के लिए आगे बढे, लेकिन बीच में जावेद आ गया. घर वाले आश्चर्य से उन लोगो की तरफ देखने लगे.

.

गुड्डू को दालान में डाल दिया था, हाथ और मुह अभी भी बंधे थे. जावेद और उसके साथियो ने घर वालो को वहां जाने से रोक रक्खा था. शायद थोड़ी मार पीट भी की गई थी उसके साथ, और वो मूर्छा की अवस्था में चला गया था. एक घंटा और बीत गया. नजरुल ने चुपके से पंडित जी के घर पूछ ताछ कराई. वहां न तो पंडित जी थे न ही नजरूल का नाती. रात के सन्नाटे के साथ साथ दिलो में भी अँधेरा छाने लगा. एक तो बच्चा नहीं मिल रहा था, ऊपर से ये एक और नई विपत्ति. घर वालो कुछ नहीं सूझ रहा था की गुड्डू की मदद क्या करे.

.

रात के एक बज रहे थे, सभी अस्त-पस्त पड़े थे. नजरुल ने हिम्मत जुटाई और दालान में जा के गुड्डू का मुह खोल के पानी पिलाने लगे. धीरे से उन्होने उसके हाथ की रस्सियाँ खोल दी. गुड्डू होश में आ गया था, और उठ के खड़ा होके भागने लगा. इससे पहले की आँगन में पहुचे जावेद के किसी दोस्त ने बहुत तेज़ धक्के दे कर उसे गिरा दिया. गिरने पर वो चिल्लाने लगा - "मै तुम सब को देख लुंगा सालो, पाकिस्तान के कुत्तो, कल सबको बताता हूँ ". वो इस वक्त कहाँ है उसे कुछ गुमान नहीं था.

इतना सुनना था की जावेद तन्द्रा की स्थिति में बदहवास सा उठा, और इससे पहले की कोई उठकर उसे रोके, पास में पड़ी एक छुरी ऊंघते हुए गुड्डू के पेट में घोप दी. छुरी गलत जगह लग गई, ऐसा लग रहा था. गुड्डू निढाल हो के एक तरफ लुढ़क गया. शायद जावेद का उसे जान से मरने का इरादा नहीं था. मगर जख्म पहुचने के मंसूबे में क़त्ल हो चुका था. कोई अपनी जगह से नहीं हिला. सब के सब वही बुत बन कर बैठे रहे. खून एक हुआ था, जाने कई जा रही थी.

.

सुबह के चार बज रहे थे. लाश आंगन में पड़ी थी और सब लोग वही जमीन पर छितराए बैठे थे. इतने में दरवाजे पर दस्तक हुयी. लोग झकझोर के उठ गए. "पोलिस तो नहीं आ गई" - किसी के मुह से निकला. लोगो के ऊपर जैसे सौ घड़ा पानी फेक दिया गया हो. बहुत ही खौफ भरा माहौल था. दस्तक दुबारा हुयी, और एक आवाज भी आई -"अब्बू दरवाजा खोलो". सबमे जान आ गयी. मौलवी साहब भाग के गए और दरवाजा खोला. खोलते ही अवाक होकर पीछे हट गए. दीनानाथ उनके नाती को लेकर बाहर दरवाजे पर खड़े थे. बच्चा नजरुल के गले में हाथ डाल कर गोद में चढ़ गया.

.

किसी ने उन्हें अन्दर नहीं बुलाया, सब लोग चुपचाप खड़े थे. माहौल न समझ पाने की वजह से धीरे से अन्दर आये. कौतूहल की अवस्था में आँगन में पड़ी लाश देखने लगे. दो मिनट बाद पछाड़ खाकर गिर गए. एक छड के लिए दीनानाथ कि निगाहे नजरूल से मिली और फिर वहीँ बेहोश हो गए.

.

मोहल्ले के कई घरो से सुबह उठाने का अलार्म, मंदिरो और मस्जिदो से घंटे-घड़ियालो और अजानो की आवाजे आ रही थी.

 

 

Views: 1096

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 6, 2012 at 10:31pm

१९९२ के उस दुष्कर समय को पार्श्व में रख कर आपने कहानी का जो तानाबाना बुना है वह सांप्रदायिक सौहार्द के क्षीण होते स्वरुप को उजागर भी करता है और उसे मज़बूती देने का काम भी| बधाईयां राकेश जी!!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 10:14pm

rachna feature hone par badhai.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 10:08pm

स्नेही राकेश जी, सादर.  स्तब्ध हो गया.  प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा . भाव मैं प्रगट नहीं कर पाता. आप अनुमान लगा लीजिये. आखिरी सीन . वाह. आर्ट फिल्म. बधाई.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 6, 2012 at 6:27pm

भाई श्री संदीप जी, श्री मान मृदु जी, एवं बहिन महिमा जी, सादर नमस्कार. आप सभी लोगो को इस रचना ने छुआ, लेखन सार्थक रहा. सराहना एवं हौसला अफजाई के लिए सादर धन्यवाद.
जो रचना की पृष्ठ भूमि है, मै ये मानता हूँ की कहीं न कहीं हर भारत वासी छुआ जरूर है, जो direct  contact में थे उन्हें ज्यादा ताप लगा, यह सख्श भी भुक्त भोगी है, हाँ कहीं न कहीं कल्पना को जरूर साथ में रखा गया है, किन्तु जिस तरह से सोसिअल फैब्रिक को तोडा निचोड़ा गया था, वह आज भी जहन में बराबर है.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 1:19pm

१९९२ के उस दुष्कर समय को पार्श्व में रख कर आपने कहानी का जो तानाबाना बुना है वह सांप्रदायिक सौहार्द के क्षीण होते स्वरुप को उजागर भी करता है और उसे मज़बूती देने का काम भी| बधाईयां राकेश जी!!

Comment by MAHIMA SHREE on April 6, 2012 at 11:58am
राकेश जी , नमस्कार
ह्रदय को उद्वेलित करने वाली यथार्थ परक पृष्ठभूमि ...बधाई स्वीकार करे...
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 11:23am

श्री राकेश सर सादर नमन , बहुत ही अच्छी कहानी पढ़ कर द्रवीभूत हो गया, सादर बधाई स्वीकार करें

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 6, 2012 at 11:20am

Disclaimer: यह कहानी किसी भी धर्म या जाती को उंचा या नीचा दिखाने के लिए नहीं लिखी है, यह बस विषम परिस्थितियों में मानवी भूलों एवं संदेहों को उजागर करने के उद्देश्य से लिखा है. धन्यवाद.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 6, 2012 at 11:17am

इस कहानी को फीचर्ड करने के लिए सम्पादक महोदय को धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service