For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता - जीव - गणित

कविता -  जीव - गणित
घाट
घाट की सीढियां
सीढ़ियों पर काबिज़ भिक्षुक
हाथ में खनकते बर्तन
हर आने  जाने वाले के लिए
दुआ देती जुबानें
इनकी तस्वीरें
हजारों में बिकती होंगी तुम्हारे देश में
इनकी झुर्रियों में दिखती होंगी तुम्हे
छायांकन की अपार संभावनाएं
पर ये बिलकुल नहीं बिकते हमारे देश में
हाँ ये सच है हमारे देश में बिकती है
हर मजबूर  देह
शौक और लिप्सा के बाज़ार में
इसी लिए अचरज न करना
अगर घाट का भिक्षुक या साधू
तुम्हारे कैमरे को देख हाथ पसार दे
सौ का नोट मांगे
तोल मोल कर दस बीस में मान भी जाए
और ख़ुशी ख़ुशी दे पोज़
अपने दुःख में डूबे चेहरे का
अब तो मानोगे न
कि मुद्रा मुद्रा देख  अक्सर बदल जाया करती है
और बदल जाती है लोगों की मुद्राएँ
तब जब हम बहुत उम्मीद से दस्तक देते हैं उनकी दहलीज़ पर
दहलीज जो  बंधी होती है कुछ समीकरणों  में
और जीव - गणितीय समीकरणों के स्वार्थ  का
कोई देश नहीं होता
कोई सीमा नहीं होती
वे बंधे होते हैं नियमों और उनके सटीक विस्तार में |
 
                  -  अभिनव अरुण   [050911]
 
 
 
 
 

Views: 830

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 6, 2011 at 1:54pm
हार्दिक आभार श्री कैलाश जी ,आदरणीया मोनिका जी एवं श्री सतीश जी --रचना आपको पसंद आई और आपने टिप्पणी की बहुत बहुत धन्यवाद !! 
Comment by Kailash C Sharma on September 6, 2011 at 1:49pm

कि मुद्रा मुद्रा देख  अक्सर बदल जाया करती है
और बदल जाती है लोगों की मुद्राएँ
.....बहुत सुंदर भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी और सटीक अभिव्यक्ति...बधाई  

Comment by mohinichordia on September 6, 2011 at 11:54am

की मुद्रा देख ,मुद्रा बदल जाया करती है ......सही कहा है अभिनव जी 

Comment by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 1:12am

हाँ ये सच है हमारे देश में बिकती है 
हर मजबूर  देह
शौक और लिप्सा के बाज़ार में
बेहतरीन ख़याल अरुण जी, दाद कबूल करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
24 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
48 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
57 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला बहुत खूबसूरत हुआ,  आदरणीय भाई,  नीलेश ' नूर! दूसरा शे'र भी कुछ कम नहीं…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service