For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,

माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से,
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों ,

( अजाब = दर्द , आब = पानी , नासाज = असहमत )

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on August 7, 2010 at 3:29pm
माना की पी गया जश्ने बहार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कही जवाब दोस्तों ,

वाह गणेश भैया वाह....बहुत सही कहा आपने....
वैसे बात सही भी हिया कभी कभी लोग महफ़िल मे दोस्तो के साथ रहने पर कुछ ज़्यादा ही पी लेते हैं....
और ये बात तो है ही की शराब के पहले ग्लास को आदमी पीता है,दूसरे को शराब खुद शराब को पीता है लेकिन 2 के बाद होने पर शराब आदमी को पीने लगता है....
बहुत बढ़िया ग़ज़ल बनाया आपने गणेश भैया.....
Comment by baban pandey on August 7, 2010 at 1:55pm
वाह गणेश भाई ,...शराब की जिक्क्र तो हुआ .भाई ...शवाव का नहीं ..बिना पिए भी आप ने लिखी
क्या बात है ...बधाई
Comment by asha pandey ojha on August 7, 2010 at 12:54pm
गणेश भैया बहुत खूब कही आपने और व्याकर्ण की ग़लतियाँ तो योगराज भैसाब ज्यदा थी बता पाएँगे भाव तो बहुत ही लाज़वाब है .. बधाई
Comment by Prabhakar Pandey on August 7, 2010 at 12:28pm
है जिन्दगी मिली बड़ी मिन्नतो के बाद ,
मिले न खाक मे कही माँ का ख्वाब दोस्तों,..........बहुत ही सार्थक एवं उत्कृष्ट...शिक्षाप्रद। सादर आभार।।
Comment by sunil pandey on August 7, 2010 at 10:02am
kya bat hai.......very nice
Comment by praveena joshi on August 7, 2010 at 9:43am
bahut badhiya aur khubsurt sabto ka taalmel hai .dil se likhi gayee hai. so ek msg bhi milta hai ki drink karne ka kya parinaam milega.
Comment by आशीष यादव on August 7, 2010 at 6:23am
Good, sundar rachna

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
29 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service