For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खोटा सिक्का (लघुकथा)

"ये लो! मैं बुध ग्रह को जीत गया।" उस सितारे की तीव्र तरंगदैर्ध्य वाली खुशी से भरपूर ध्वनि से आसपास की आकाशगंगाएं गुंजायमान हो उठीं।

 

सूदूर अंतरिक्ष में, जहाँ समय और विस्तार अनंत हैं, चार सितारे अपने ही प्रकार का जुआ खेल रहे थे। दांव पर लग रहे थे, उनके सौरमंडल के विभिन्न छोटे-बड़े ग्रह, उपग्रह, उल्कापिंड आदि। मनुष्यों से प्रेरित हो हमारा सूर्य भी उनमें से एक था। हालांकि उस समय उसका समय सही नहीं था। वह लगातार हार रहा था।

 

शनि के वलय, मंगल का सबसे ऊंचा पर्वत, बृहस्पति का एक चन्द्रमा हारने के बाद उसने कुछ बड़ा जीतने की उम्मीद में बुध को दांव पर लगा दिया। लेकिन जब समय साथ नहीं देता तो बड़े से बड़े ऊर्जावान का सक्रीय मस्तिष्क भी वक्रीय हो जाता है और खेल-खेल में ही दूसरे सितारे ने बुध को भी जीत लिया।

 

बुध को हमारे सौरमंडल को छोड़ कर कहीं और जाना था। सूर्य के लिए अपने सबसे छोटे पुत्र का यह बिछोह असहनीय था। उसने बुध को फिर से पाने के लिए अब अपनी बेटी धरती को दांव पर लगा दिया।

 

धरती यह देख-सुनकर कांप सी गयी। खेल रहे बाकी तीन सितारों ने भी धरती पर दृष्टि डाली, एक-दूसरे से इशारों में बात की और फिर एकमत होकर सूर्य को धरती को दांव पर लगाने से मना कर दिया।र 

 

चौंधते हुए सूर्य ने चौंकते हुए कारण पूछा तो उनमें से एक ने टिमटिमाते हुए कहा, "पिछली बार जब देखा था, तब तो नीले रंग की धरती बहुत सुंदर थी लेकिन अब इसमें वो बात नहीं रही। यह काली होती जा रही है। खनिज तो क्या हवा भी ज़हरीली है, जल भी गंदा हो चुका है। खाद्यान्न भी विषाक्त! ऐसी खोटी धरती दांव पर लगने लायक है ही नहीं।"

 

सूर्य धरती को दांव पर नहीं लगा सका।

 

और धरती ने सौर वायु से चैन की साँस लेते हुए मानवों का शुक्र अदा किया।

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 20, 2018 at 11:40pm

रचना के मर्म तक जाकर समीक्षात्मक मार्गदर्शन देती टिप्पणी हेतु सादर आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब। आपके सुझावों को अमल में लाने का प्रयास करता हूँ। सादर,

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 3, 2018 at 6:13am

अपने नज़रिए से स्वाभ्यास हेतु  अपने कुछ 'सामान्य पाठकीय' सुझाव पेश कर रहा हूँ। आशा है आदरणीय डॉ.  चन्द्रेश सर जी आपका मार्गदर्शन भी मिल सकेगा :

1- आरंभिक पंक्ति में  //उस सितारे की तीव्र तरंगदैर्ध्य वाली // वाक्यांंश में शब्द 'उस' के स्थान पर// साथी खिलाड़ियों से बाजी जीतने वाले // या केवल //अबकी बाज़ी जीतने वाले// किया जाये, तो?

2- रचना की नौवीं पंक्ति में //के बाद उसने कुछ बड़ा जीतने की..// में वाक्यांश में शब्द 'उसने' के स्थान पर //सूर्य या उसका कोई सरल पर्यायवाची शब्द// रखने से हम सामान्य पाठकों के लिये क्या स्पष्टता बढ़ सकती है?

3- //चौंधते हुए ..// के पहले भूलवश /र/ टंकित हो गया/ छूट गया है । 4- अंत में //नहीं लगा सका// के ठीक बाद ही समापन उत्कृष्ट कटाक्षपूर्ण पंचपंक्ति पंचपंक्ति का पहला शब्द //और// जोड़ दिया जाये, तो? बेटी धरती को 'खोटे सिक्के' के रूप में स्वीकार किये जाने से विजेता सितारों द्वारा मना किया जाना और हालात के दोषी मनुष्यों के प्रति धरती द्वारा 'मानवों का शुक्र अदा करना' इस लघुकथा को ऊंचाई पर ले जाता है शीर्षक सार्थक करते हुए 'अति सर्वत्र वर्जयेत'की याद दिलाते हुए और 'पर्यावरण-चिंतन-मनन' उत्पन्न करते हुए रचना को उद्देश्यपू्र्ति की ओर ले जाते हुए। एक बार पुनः हार्दिक बधाई और हमें यूं मार्गदर्शित करने के लिये हार्दिक आभार।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 3, 2018 at 1:06am

ग्रहों और उपग्रहों के बीच सूर्य और पृथ्वी की  नियति और विधि-विधान/प्रकृति के विरुद्ध मानव की ग़ुस्ताख़ियां और वर्तमान में धरा और उसके आवरण की दुर्दशा को बाख़ूबी उभारती विचारोत्तेजक वास्तविक मानवेतर लघुकथा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी साहिब। हालांकि आरंभ में सामान्य पाठकों के लिए भाषा शैली कुछ कठिन लगी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
".कितनी सदियों से चाक पर हूँ मैंमेरी मिट्टी का कुछ बना तो नहीं.हासिल-ए-ग़ज़ल शेर रहा।  टूट कर…"
3 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अभी समय मॉंगती है। आपने फ़लक को एक से अधिक मानते हुए शेर कहा, बहुत से आकाशों की कल्पना ग़लत…"
7 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय तिलक राज कपूर जी, मतले पर आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार। शेष शेर पर भी कुछ मार्गदर्शन…"
29 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. नीलेश भाई ने अच्छा मार्गदर्शन किया है। इससे यह…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यूँ तो पूरी गजल ही लाजवाब हुई है पर ये दो शेर पर अतिरिक्त बधाई…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी नमस्कार बहुत खूब ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सभी शैर बहुत अच्छे…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, ग़ज़ल पर अपकी टिप्पणी के लिए आभार पर कुछ विस्तार से मार्ग दर्शन करते तो अच्छा…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका अपने समय दिया कुछ त्रुटियों की…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास है। तीन शेर 4,5, व 6 तो बहुत अच्छे लगे। बधाई…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं में कुछ ग़ल़त नहीं है। हुआ अपने आप में पूर्ण शब्द…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी टिप्पणी के अनुसार काफिया में कोई कमी हे तो स्पष्ट समझायें। कुछ उदाहरण…"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"तौर-ए-इमदाद ये भला तो नहीं  शहर भर में अब इतना गा तो नहीं     मर्ज़ क्या है समझ…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service