For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कालू की बेटी (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

आज फिर यहां लोगों का जमावड़ा था। हर तबके की हर आयु वर्ग की लड़कियों, महिलाओं या पुरुषों​का आना-जाना कुछ दिनों से चल रहा था। कोई आभार व्यक्त करने, तो कोई मदद पाने के इरादे से सम्पर्क साधने की कोशिश में था। दरअसल दो सालों के बाद कालू की बेटी विदेश से आई हुई थी। कोई कालू को घेरे हुए था, तो कोई उसकी बेटी को। कालू को सेवा-मुक्त हुए लम्बा समय हो चुका था। बड़े नेताजी के बगीचे के माली बनने से लेकर उनका खास ड्राइवर बनने और फिर उनके खेतों का रखवाला बनने तक के तजुर्बे और फिर रिटायर होने पर लोगों से घिरे रहने के अनुभव से सुखी कालू आज भी लोगों को बहुत ख़ुश नज़र आ रहा था। पत्नी गुज़र चुकीं थीं। बेटे धनवान हो कर अपनी-अपनी जगह स्थापित हो चुके थे।

कालू अतीत में खोया हुआ था, तभी एक खास पड़ोसी ने उसकी तंद्रा भंग की :

"भगवान ने बड़ी कृपा की है तुम पर!" पड़ोसी ने कहा।

"कौन से भगवान? ऊपर वाले या नीचे वाले.. मेरा मतलब 'हमारे नेताजी'?" बड़े से कक्ष में आधुनिक सोफे पर लेटते हुए कालू बोला।

"तुम्हारे लिए तो नेता जी ही भगवान हुए! बेटे तुम्हारे साथ नहीं हैं, तो क्या हुआ। नेताजी की बदौलत तरक़्क़ी पायी हुई तुम्हारी बेटी तो आज भी तुम्हारा पूरा ख़्याल रखती है न!"

"कौन सी बेटी? जो आई है या जो हम लोगों के पास हमेशा रहती है?" कालू ने ठहाका लगाते हुए पड़ोसी के कंधे पर हाथ मारकर कहा।

"तुम लोगों के पास? कौन सी बेटी?"

"अरे भाई! सम्पत्ति है हमारी असली बेटी! धन-दौलत, नेताजी की बदौलत!" महिलाओं से घिरी हुई अपनी बेटी की ओर देखते हुए कालू ने कहा- "यही असली बेटी तो सबके वारे-न्यारे कर रही है, मायका हो या ससुराल!"

"तुम्हारा हो, या बेटी का हो या तुम लोगों के ज़रिए नेता जी का!" पड़ोसी ने कालू के कंधे पर हाथ मारकर कहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 23, 2017 at 11:04pm
रचना पटल पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 8:30pm

आदरणीय   Sheikh Shahzad Usman  जी सुंदर,सार्थक और संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई सर। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 23, 2017 at 8:11pm
मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय Mohammed Arif जी व आदरणीय राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 18, 2017 at 9:12pm

अच्छी लघु कथा है आद० शेख शहज़ाद उस्मानी जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by Mohammed Arif on June 14, 2017 at 10:24pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,कथ्य व शिल्प में बेहतर लघुकथा । संवाद भी बढ़िया । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
3 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service