For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द अपना कह रही बस प्रीत गजलों की मेरे।

2122-2122-2122-212

मत करो तारीफ फ़र्जी गीत गजलों की मेरी।।
दर्द अपना कह रही बस प्रीत गजलों की मेरी।।

कशमकश है आप की मेरे दिले दरबार में।
लिख रहा हूँ आज जो भी जीत गजलों की मेरी ।।

राह में निकला मुसाफिर मुफलिसी हूँ ख्वाब हूँ।
चल रही गुपचुप सी बाता चीत गजलों की मेरी।।

मानता हूँ दर्द से लिपटी रही है उम्र भर।
दौरे पर्दा उठ गया है मीत गजलों की मेरी।।

वाह वाही लूटते दिख जायेगे बेशक हमीं।
बज्म बेशक जानती है रीत गजलों की मेरी।।
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2016 at 3:34pm

//गजल में बहर और शब्दों को सुना था माफ़ भी कर दिया जाता है जो भाव स्पस्ट हो रहे हों//.

भाई ये क्या सुन लिया आपने और कहाँ सुन??? बह्र के बिना कभी ग़ज़ल नहीं होती है और अपनी सुविधा के लिए शब्दों का स्वरूप बदलना भी सही नहीं होता, मेहनत करते रहिए शिल्प भी सध जाएगा

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 8, 2016 at 11:33am
आ शिज्जू साहब आदाब
सर गजल में बहर और शब्दों को सुना था माफ़ भी कर दिया जाता है जो भाव स्पस्ट हो रहे हों ....वैसे अभी 8 महीने ही हुए है । प्रयास रत हूँ । आप बताते रहे खामिया जरुर ख़त्म करूँगा ..सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2016 at 11:15am

कशमकश है आप की मेरे दिले दरबार में।
लिख रहा हूँ आज जो भी जीत गजलों की मेरी ।। कहन के हवाले से ये शेर थोड़ा समय चाहता है

राह में निकला मुसाफिर मुफलिसी हूँ ख्वाब हूँ।
चल रही गुपचुप सी बाता चीत गजलों की मेरी।।  बाता चीत???

बहरहाल प्रयास के लिए बधाई आपको

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2016 at 10:40pm
कल्पना जी सादर आभार नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2016 at 10:36pm
आदाब समर साहब जी शुक्रिया गजल की कोशिस सराहने के लिए ....सर इत्ती समझ होती तो कर न लेते हम । मुझे लगा गजलो है तो मेरे उचित है । सर हम इसे एडिट किए दे रहरे हैं आप को दिल से नमन सर आगे भी मेरी खामियां बताईए गा जिससे हम समाज में अच्छी रचनाये दोष मुक्त रचनाए ला सके । सदर नमन
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 7, 2016 at 10:32pm

हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए |

Comment by Samar kabeer on September 7, 2016 at 10:23pm
जनाब आमोद श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
ग़ज़ल शब्द चूँकि स्त्रीलिंग है, इस लिहाज़ से आपकी रदीफ़ "की मेरे"ग़लत हो जाती है,'मेरी' को "मिरी"होना

होना चाहिये न ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
10 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
33 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया। अच्छा मतला हुआ। ‘सुनते…"
41 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
" आ. महेन्द्र कुमार जी, 1." हमदर्द सारे झूठे यहाँ धोखे बाज हैं"  आप सही कह रहे…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  दयावान जी मेधानी, कृपया ध्यान दें कि 1. " ये ज़िन्दगी फ़ज़ूल,  वाक्यांश है,…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"कोई बात नहीं आदरणीय विकास जी। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। वह ज़्यादा ज़रूरी है। "
2 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हार्दिक आभार आपका महेंद्र कुमार जी। हाल ही में आंख का ऑपरेशन हुआ है। अभी स्क्रीन पर ज़ियादा समय नहीं…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अब बेहतर है। बस जगमगाती को जगमगाते कर लें। "
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय mahendra kumar जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने वक़्त निकाला ग़ज़ल तक आए उसे सराहा बहुत…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार। आपके सुझाव उत्तम हैं।…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"दिल से आभारी हूँ आदरणीय दयाराम जी. बहुत शुक्रिया. "
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय गजेन्द्र जी. आभारी हूँ. यदि थोड़ा स्पष्ट सुझाव मिल जाता तो बड़ी कृपया होती.…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service