For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमें भी न आया 

 

तू ऐसा बीज थी

जिसे न मिली धूप

न हवा, न पानी

और न कोई खाद 

फिर भी तू पनपी 

पनपी ही नही  

बन गयी एक पेड़

बरगद सी छाया

 

फिर तूने बसाया

अपना संसार 

और कहलाई माँ

फिर बांटी तेजस धूप

पवन में भरी गंध

दूध से सींचे पौधे

हृदय को मथकर

लाई खाद

हुए तेरे

लख-लख पूत आबाद

 

एक बार फिर

व्यर्थ हुयी माँ

वह तेरी तपस्या

वह तेरा त्याग

क्योंकि

पुरुष होने के अहम् में    

‘बीज’ की कद्र करना

फिर भी हमें न आया I

(मौलिक  व् अप्रकाशित)_  

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on July 12, 2015 at 9:21pm
बहुत अच्छी सुन्दर कविता आदरणीय. सच है.. अपने विकास - क्रम में हर स्तर पर वो बीज आहत होता है. जो कद्र होनी चाहिए उसकी उससे बंचित रहता है.
हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2015 at 9:21am

aadarneey Pari M Shlok jee

aapkaa  aabhaar

Comment by Pari M Shlok on July 9, 2015 at 3:13pm
बेहद सारगर्भित कविता बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:56pm

आ० चौहान जी

आभारी हूँ. सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:55pm

आदरणीय निकोर जी

आपको प्रणाम सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:55pm

आ० कांता राय जी

आपका समर्थन  स्वागत योग्य है .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:54pm

आ० विनय जी

बहुत आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:53pm

आ० मिथिलेश जी

बहुत धन्यवाद .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 8:53pm

आदरणीय सविता जी

सादर आभार.

Comment by narendrasinh chauhan on July 8, 2015 at 6:37pm

अति सुन्दर रचना

आदरणीय गोपाल नारायन जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय जयहिंद  जयपुरी जी सादर नमस्कार जी।   ग़ज़ल के इस बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। वाह वाह बेहद शानदार मतला के साथ  शानदार ग़ज़ल के लिए दिली…"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी सादर नमस्कार जी। क्या ही खूबसूरत मतला हुआ है। दिली दाद कुबूल कर जी।आगे के अशआर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतनी बारीकी से ग़ज़ल को देखा  आपकी इस्लाह…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब! ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई हो। मतला यूँ देखिए…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service