For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उम्दा तैराक कभी था तो यकीनन पर सुन

2122   1122   1122   22/112

हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये 

आप हैं  बुझते दिए आप जरा चुप रहिये 

आईना देख के बालों की सफेदी देखें 

गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये

 

आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर

बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे  बहिये 

इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना 

पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?

लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं 

आप उस मोड़ पे मत दर्दे मुहब्बत सहिये

मौत महबूब तड़प कर  के मिलेगी तुझसे 

दिल में ले उसकी तड़प आप भी जगते रहिये

मैकदा जाम सुराही हैं सभी मेरे लिए 

इस हकीकत पे कभी आप भी तो कुछ कहिये 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 8, 2015 at 1:54pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपका मशविरा मेरे लिए बहुमूल्य है ..आदरणीय सर ये ग़ज़ल मेरे कालेज जीवन की ग़ज़ल है ..इसे दोस्तों में कई बार सुनाने के कारण इसे प्रकाशित करते समय तकनीकी पक्ष की ध्यान बिलकुल नहीं दे पाया ..कहीं न कहीं चूक मुझसे बार बार हो जाती है इन गलतियों से बचने का प्रयास करूंगा सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 8, 2015 at 10:43am

आदरणीय गोपाल सर ..आपने बिलकुल सही कहा है ..मैं समय नहीं दे पाया ..करिए शब्द गलत है मैं ग़ज़ल पुनः संसोधित करूंगा सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 11:16pm

बोलचाल के शब्द रचनाओं में हों लेकिन ग़ज़लों के शब्द इतने भी बोलते-चलते नहीं हुआ करते. वैसे आपने हास्य-ग़ज़ल पर बहुत ही गंभीर प्रयास किया है. इसकेलिए आपकी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिये. शायद आपको पहली बार हास्य ग़ज़ल पर हाथ आजमाता हुआ देख रहा हूँ.

हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 7, 2015 at 9:59pm

आशुतोष जी

कुछ समय और देना था

इस हकीकत पे कभी आप यकीं तो करिये ------कहिये, रहिये, बहिये में यह 'करिए 'कहाँ से आ गया --- सादर .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 9:59am

आदरणीय वीनस जी ..आपकी प्रतिक्रिया में इंगित मशविरे के अनुरूप सुधार करते हुए भविष्य में इस तरफ बिशेस ध्यान रखूंगा ..का के गलती से लिख गया ..कर के  था ......चहिये ..मैं आपका इशारा समझ गया चाहिए होना था पर यह बहर से ख़ारिज होगा ..ये शेर में हटा दूंगा ..उमर की जगह उम्र करते हुए संसोधन करूंगा ...आपके उत्साहित करती...मार्गदर्शन देते और सचेत करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार ज्ञापित करता हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 9:46am

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..का के गलती से हो गया मौत महबूब तड़प ...कर  ..के मिलेगी तुझसे...कर की जगह का टाइप हो गया था मैं फिर से अवलोकन करके संसोधन करने का प्रयास करूंगा .आपके मशविरे और स्नेह का आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 9:42am

आदरणीय विजय सर ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 7, 2015 at 1:21am

खूब ग़ज़ल कही है कुछ बिन्दुओ को साझा करना चाहता हूँ ....

पंचर पहिये वाला शेर मजाहिया हुआ जा रहा है ...उम्र को उम्र जैसा भी निभा सकते हैं उमर करने की क्या ज़रुरत थी ...

का के ने मुझे भी हैरान किया है

मतला बढ़िया बनते बनते रह गया ...

हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये 

आप हैं बुझते दिए आप जरा चुप रहिये

करी करिए जैसे शब्द आम बोल-चाल में तो हैं मगर सिन्फे-ग़ज़ल जब तक इनसे बच सके बचाए रखिये ...
क्या आपने सोचा कि चहिये जैसे काफिये को कितना स्वीकार किया जाएगा .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 8:46pm

आदरणीय  आशुतोष भाई , गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , एक बार ध्यान से सभी अश आ र और पढ़ लीजिये , कुछ समय कम दिये हैं ऐसा लग रहा है  । पहले शे र मे दो बार आप है  , ठीक नही लग रहा है

छठवें  शे र मे  ---- का  के  आपने लिखा है , मै समझ नही पाया । प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 7:54pm
वाह! मजा आ गया। ऐसे भी चेतावनी दी जाती है, सही है, बधाई आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
8 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
14 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
38 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय को सार्थक करतीब हुत बढ़िया दोहावली की प्रस्तुति। इस…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आपने पर्यावरण के विभिन्न आयामों को सम्मिलित करते हुए एक बढ़िया प्रस्तुति दी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया कुंडलिया छंद हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। इस प्रस्तुति…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"धुंध गहरी और खाई दिख रही है  अब तरक्की में तबाही दिख रही है। बोझ से घायल हुआ सीना जमीं…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service