For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मध्य मार्ग : कविता : नीरज कुमार नीर

आज सुबह से ही ठहरा हुआ है,
कुहरा भरा वक्त.
न जाने क्यों,
बीते पल को
याद करता.
डायरी के पलटते पन्ने सा,
कुछ अपूर्ण पंक्तियाँ,
कुछ अधूरे ख्वाब,
गवाक्ष से झांकता पीपल,
कुछ ज्यादा ही सघन लग रहा है.
नहीं उड़े है विहग कुल
भोजन की तलाश में.
कर रहे वहीँ कलरव,
मानो देखना चाहते हैं,
सिद्धार्थ को बुद्ध बनते हुए.
बुने हुए स्वेटर से
पकड़कर ऊन का एक छोर
खींच रहा हूँ,
बना रहा हूँ स्वेटर को
वापस ऊन का गोला.
बादल उतर आया है,
घर के दरवाजे पर
मुझे बिठा कर परों पर अपने
ले जाना चाहता है.
एक ऐसी दुनिया में
जहाँ
प्रकाश ही प्रकाश है
जहाँ बादल छांव देता है
अंधियारा नहीं करता.
बगल की दरगाह से
लोबान की महक का
तेज भभका
नाक में घुसकर
वापस ला पटकता है
कमरे की चाहरदीवारी के भीतर ..
दीवार पर टंगी है
तुम्हारी एक पुरानी तस्वीर
जो आज भी लरजती है ख़ुशी से
हाथों में पकड़े मेरा हाथ .
नहीं यशोधरा, मैं नहीं करूँगा
निष्क्रमण.
मैं बढूँगा अंतर्यात्रा पर
पकड़े हुए तुम्हारा हाथ.
मैंने चुना है अरण्य एवं लावण्य के बीच
एक मध्य मार्ग .
.. नीरज कुमार नीर

Views: 776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on March 14, 2014 at 7:45pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी .. आपका कुछ नहीं कहना बहुत कुछ कह गया .. अनेकानेक धन्यवाद . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2014 at 7:38pm

आज आ पाया आपकी इस रचना पर. कहना बहुत कुछ चाहता हूँ. लेकिन आवश्यकता है भी क्या ? बहुत-बहुत बधाई ऐसी वैचारिकता को शब्दबद्ध करने के लिए. 

Comment by Neeraj Neer on March 5, 2014 at 8:53am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी .. आपका आभार व्यक्त करता हूँ , आपका इस रचना पर आना और आपकी यह टिप्पणी रचना को सार्थक कर गयी .. और मुझे तुष्ट ... प्रोत्साहित अनुभव कर रहा हूँ .. आपके  समर्थन एवं मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी हूँ .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 4, 2014 at 1:13pm

आपकी रचनाओं की भावदशा/अंतर्धारा बहुत प्रभावित करती है 

..मैं बढूँगा अंतर्यात्रा पर 
पकड़े हुए तुम्हारा हाथ.
मैंने चुना है अरण्य एवं लावण्य के बीच 
एक मध्य मार्ग .....................................संतुलन बनाते चलने में, डगमगाते लड़खडाते सीखते सम्हलते चलने में अंतर्यात्रा की खूबसूरती व आनंद सन्निहित है. अंतर्भावों की, गहन चिंतन मनन से निस्सृत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2014 at 9:04am

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्र जी आपका हार्दिक आभार, आपकी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित महसूस कर रहा हूँ ..  

Comment by Neeraj Neer on February 25, 2014 at 9:03am

आदरणीय जीतेन्द्र गीत साहब आपका हार्दिक आभार ..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 23, 2014 at 7:49pm

बहुत ही सम्बेदंशील, गहन बिचारों से ओतप्रोत शानदार रचना ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई ..सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 23, 2014 at 8:35am

बहुत सुंदर रचना, बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by Neeraj Neer on February 22, 2014 at 5:51pm

आ. भाई शिरोमणि पाठक जी सादर धन्यवाद. 

Comment by Neeraj Neer on February 22, 2014 at 5:50pm

आपका आभार आ. श्याम नारायण वर्मा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service