For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिखने वाले कलमकार के रूतबे

बदलते समय के साथ पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में कई बदलाव आए हैं और बाजार में जब से पत्र-पत्रिकाओं की बाढ़ आई है, तब से लिखने वाले कलमकारों की रूतबे कहां रह गए हैं, अब तो दिखने वाले कलमकारों का ही दबदबा रह गया है। सुबह होते ही काॅपी, पेन और डायरी लेकर निकलने वाले कलमकारों के क्या कहने, वैसे तो ऐसे लोग अपनी पाॅकिट में कलम रखना नहीं भूलते, लेकिन यह जरूर भूले नजर आते हैं कि आखिर वे लिखे कब थे। लोगों को अपनी कलम की धार दिखाने उनके लिए जुबान ही काफी है, जहां से बड़ी-बड़ी बातें निकलती हैं। ऐसे में उन जैसे कलमकारों से कौन भौंचक्के न खाए। कलम की स्याह कागज पर रंगे, ना जाने कितने दिन बीत गये, मगर लिखने का जुनून हर पल सवार रहता है। हर रोज लिखने की तमन्ना जाहिर की जाती है और यही फलसफा रोजाना चलता रहता है।
ऐसे ही कई कलमकारों से मैं परिचित हूं और उनसे मेरी मुलाकात खबरों के माध्यम से कभी उनके पत्र-पत्रिकाओं में नहीं होती। हां, किसी बड़े नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस या फिर कुछ ऐसे आयोजनों में भेंट हो जाती है, क्योंकि सवाल यहां चेहरा दिखाने की होड़ जो मची रहती है। चेहरा दिखाए और खबरों का कव्हरेज भी किए, लेकिन वही रोजाना का भूत, फिर भूल गए कि सफेद कागज का रंगना कैसे है ? दिखने कलमकारों से यहीं बेचारे लिखने वाले कलमकार फेल हो जाते हैं, क्योंकि उनकी जिंदगी चार खबरों तक सिमटी रहती है। दिखने वाले कलमकार भाई, वैसे तो दिन में कई जगहों पर अपना पग रखकर, आयोजन और आयोजनकर्ताओं को धन्य कर देते हैं, लेकिन लिखने वाले कलमकारों की मजबूरी कहंे कि उन्हें हर दिन कलम कागज पर रगड़ना ही है। उपर से बढ़िया खबर बनाने का दबाव अलग, इस तरह भला कैसे वो दिखने वाले कलमकारों के सामने ठहर सकते हैं और उस होड़ में षामिल होने की हिम्मत जुटा सकते हैं, क्योंकि रोजी-रोटी का सवाल है। वे तो अपना जुगाड़ कहीं न कहीं से जमा लेंगे, लेकिन हमें तो इन चार खबरों का ही सहारा है। सुबह से षाम तक खबरों की ठोह लेने में ही लिखने वाले कलमकारों के चैबीसों घंटे बीतते हैं और क्या खाना और क्या पीना, हर पल केवल खबरों की भूख। इन सब बातों से हमारे दिखने वाले कलमकार भाई परे रहते हैं, क्योंकि उन्हें न तो खबरें तैयार करने की झंझट होती है, ना ही किसी तरह का कोई और बंदिषें। उनके पास केवल एक ही झंझट होती है कि कैसे अपने दिखावे के रूतबे को बढ़ाया जाए। वे हर जगह नजर आते हैं, उनकी सोच रहती है, इसी बात से रूतबा बढ़ जाए। यहां सभी ओहदेदार अफसरों से परिचय होता है। इस मामले में बेचारे लिखने वाले कलमकार किस्मत के मारे होते हैं, रोज-रोज लिखने के बाद भी दिखने वाले चेहरे के सामने उनके चेहरे कहीं गौण हो जाते हैं।
मीडिया क्षेत्र में आई क्रांति से कलमकारों की संख्या में एकाएक इजाफा हुआ, मगर पत्रकारिता और साहित्य के बारे में सोचने की भला उनके पास समय कहां, वे तो अपने बारे में सोचते हैं कि कैसे अपना रूतबा बढ़ाया जाए और अपना धाक बढ़ाया जाए। बेचारे लिखने वाले कलमकार इन आंखों देखी हालात पर सिसककर रह जाते हैं। उन्हें ऐसी हालात देखकर दुख भी होता है, होना भी चाहिए, क्योंकि कोई दिन भर गधा की तरह काम करे और दूसरा उसका मेहनताना आकर ले जाए, यह तो सरासर गलत है। दिन-रात खबरों के पीछे भागकर खून कोई और सुखाए तथा अपनी जिंदगी को खबरों के नाम कर दे, लेकिन जब उसका भुगतान लेने की बारी आई तो लाइन में किसी और खड़ा होना, कौन भा सकता है। दिखने वाले कलमकारों की साख के आगे भला लिखने वालें की क्या साख हो सकती है, क्योंकि वे तो मंत्रियों और अफसरों के चहेते जो होते हैं, भले ही इसके लिए उन जैसे दिखने वाले कलमकारों को अपना स्वाभिमान ही गिरवी ना रखना पड़े। आखिर में सवाल, दिखावे के रूतबे का जो है, यदि यहीं नहीं रहेगा तो धंधा फिर मंदा पड़ जाएगा और जब धौंस ही नहीं रहेगी तो काहे का कलमकार।

राजकुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ़
लेखक व्यंग्य लिखते हैं

Views: 277

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 10:57am
बहुत बढ़िया राज कुमार साहब, आपका व्यंगात्मक अंदाज भी काफी अच्छा है, व्यंग के माध्यम से कलमकारों के दुखती रग को भी आपने सहलाया है | बहुत बढ़िया , कृपया अपनी रचनाओं पर आने वाले टिप्पणी पर Acknowledge किया करे तथा अन्य साहित्यकारों की रचनाओं पर अपना बहुमूल्य विचार भी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला बहुत आभारी हूँ आपका आपने बहुत माकूल इस्लाह…"
11 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय विकास जी। मतला, गिरह और मक़्ता तो बहुत ही शानदार हैं। ढेरो दाद और…"
46 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलक राज जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल के हर शेअर को फुर्सत से जांचने परखने एवं सुझाव पेश करने के…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. जयहिंद रायपुरी जी, अभिवादन, खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, सादर अभिवादन  आपने ग़ज़ल की बारीकी से समीक्षा की, बहुत शुक्रिया। मतले में…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service