For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक़्त के साहिल से
विचारों  के जाल
अतीत में फेंक कर ,
निकाल लेता हूँ
कुछ डूबती  हुई
यादें .....

 

फिर ....
उन्हें जोड़कर ,
सिलसिलेवार....
और दोहराकर,
बना लेता हूँ मजबूत ,
यादों की हिलती बुनियादें ....

 

और फिर ...
छोड़ देता हूँ विचारों को पुन:
अतीत के गहरे गर्त में
ताकि
ला सकें अपने साथ
किसी भूले बिसरे पल को .
सुनी हैं आज फिर
तल से आती फरियादें ...

Views: 409

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2011 at 3:26pm

मिलजुल कर सब सधता जाता है.

सधन्यवाद, भाई राजपूत जी.

Comment by AK Rajput on December 26, 2011 at 3:15pm
 सौरभजी , टिप्पणी और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , आशा करता हूँ आपका मार्गदर्शन आगे भी
मिलता रहेगा .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2011 at 2:23pm

वैचारिक रूप से समृद्ध इस रचना हेतु हार्दिक साधुवाद, भाई राजपूतजी. 

एकाकी क्षणों में चुपचाप हो गये मनस की सटीक अभिव्यक्ति हुई है.  अस्फुट भाव गुच्छे-गुच्छे प्रतिपल उमगते हैं. नैरंतर्य इन्हें स्थावर बना देता है. काल-खण्ड व्यतीत होता जाता है.  बहुत सुन्दर... .

 

अनुरोध -

और फिर ...पुन:
छोड़ देता हूँ विचारों को
अतीत के गहरे गर्त में

इस खण्ड की प्रथम पंक्ति से ’पुनः’ को दूसरी पंक्ति का हिस्सा बना दें. शाब्दिक पुनरवुति का दोष भी खतम हो जायेगा और कथ्य भी ठीक उसी रूप में उभर कर आयेगा जिस रूप में इस कविता की मांग है.  अन्यथा, ’और फिर’  तथा  ’पुनः’  एक साथ नहीं आया करते.

 

अच्छी रचना के लिये एक बार पुनः बधाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2011 at 1:48pm
धन्यवाद आदरणीय तथ्य अधिक स्पष्ट हुए |
Comment by AK Rajput on December 25, 2011 at 11:21am

Ganesh Jee "Bagi" 

टिपण्णी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,
बना लेता हूँ मजबूत ,  
यादों की हिलती बुनियादें.
 
इसमे  बिखरती  हुई यादों को फिर से मजबूत बनाने की बात कहीं है .
बना लेता हूँ मजबूत ,   ( यहाँ अल्प-विराम दिया है ).
लेकिन मुझे  बहुत ख़ुशी हुई जो आपने इतना विश्लेषण किया .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2011 at 10:58am

विचारों के जाल
अतीत में फेंक कर ,
निकाल लेता हूँ
कुछ डूबती हुई
यादें .....

वाह क्या बात है , कल्पना लोक में तैरती यह कविता खुबसूरत बन पड़ी है , मुझे एक जगह कुछ विचारों में विरोधाभास महसूस हुआ ,

 बना लेता हूँ मजबूत ,
यादों की हिलती बुनियादें ....


मजबूत भी और हिलती हुई बुनियाद , एक बार नजरेशानी की आवश्यकता है या हो सकता है कि कवि के भाव मुझ तक पहुच नहीं पा रहे हो |

बधाई इस रचना हेतु | 

Comment by Abhinav Arun on December 24, 2011 at 3:47pm

सुनी हैं आज फिर
तल से आती फरियादें

बहुत खूब यादों के विविध बिम्बों और मनोभावों को बड़ी  सहजता से कविता में पिरोया है  आपने , खूबसूरत रचना , हार्दिक बधाई !!

Comment by mohinichordia on December 24, 2011 at 3:05pm

i like it 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service