For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

त्यागपत्र (कहानी)


त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 5 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 6  ---------------

दोषी लोगों को सज़ा दिलाने के लिए प्रबल प्रताप सिंह कृतसंकल्प थे, किन्तु राजनीतिक हलकों में उनकी पहुँच अच्छी थी. पार्टी अध्यक्ष उमाकांत ने सिंह साहेब से स्वयं मिलकर कहा - ' आपने जिन लोगों को दोषी करार दिया है, वे अपनी पार्टी के शुभचिंतक हैं.'

अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर प्रबल बाबू आवाक रह गए. खीज कर उन्होंने कहा - 'पार्टी के शुभचिंतकों को गैरकानूनी हरकतों की छूट है क्या? ' सिंह साहेब की बातों से उनके इरादों का स्पष्ट आभास हो रहा था. अध्यक्ष के बार-बार कहने के बावजूद जब प्रबल बाबू ने नरम रुख नहीं अपनाया तो उन्होंने भी अपना तेवर तल्ख़ कर लिया - ' आपको ये  मालूम होना चाहिए कि उनलोगों की पहुँच आलाकमान तक है, यदि वहाँ से आपको पदमुक्त करने का निर्देश आ जाय तो मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाऊँगा.' 

फिर भी प्रबल बाबू के रुख में कोई नरमी नहीं आई- ' मैं त्यागपत्र देने को प्रस्तुत हूँ. मुझे मंत्री-पद से अधिक उन वादों का ख्याल है, जो मैंने भोले-भाले लोगों से किया है.' अध्यक्ष उमाकांत ने कुर्सी पर पहलू बदलते हुए कहा - ' आप में जोश तो है प्रबल बाबू पर होश नहीं है. राजनीतिज्ञ को एक साथ दोहरी ज़िन्दगी जीनी पड़ती है, एक चौराहे की और एक घर की. चौराहे पर उसके सामने भोली-भाली जनता होती है, जहाँ तरह-तरह के वादे कर देने भर से काम निकल सकता है, किन्तु घर पर उसके सामने बीवी और बच्चे होते हैं, जहाँ वह मात्र पति और पिता होता है. सिंह साहेब, ज़िन्दगी उपदेशों से नहीं पैसों से आगे बढ़ती है. महाराणा प्रताप की दास्तान सब कह सकते हैं पर महाराणा प्रताप बन नहीं सकते. हकीक़त को झुठलाकर इंसान सिर्फ अपने को ही धोखा दे सकता है. आपके सामने आपके बच्चों का भविष्य है.' 

प्रबल बाबू की खामोशी यह बता रही थी कि उनके भीतर विचारों का सैलाब उमड़ रहा है. कहीं नेक विचार उनके भीतर के जग रहे शैतान को पराजित न कर दे, यह सोचकर अध्यक्ष ने उनकी स्वार्थपरता को हवा देना जारी रखा. ........
(क्रमश:)

अंक 7 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on November 4, 2011 at 10:37pm
धन्यवाद मित्र, जो हुक्म ............ 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 4, 2011 at 3:09pm

समाज की निर्बीज खीझ को क्या ही व्यक्त किया है आपने.. वाह !

 

//कहीं नेक विचार उनके भीतर के जग रहे शैतान को पराजित न कर दे, यह सोचकर अध्यक्ष ने उनकी स्वार्थपरता को हवा देना जारी रखा//

मानसिक द्वंद्व को उभारती पंक्ति. रोचकता बनी है. जारी रहें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
16 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service