For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे

हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे --
हाँ ---कहो --- तुमने भी प्यार किया था हमसे

कसम खुदा की ईमान भी दे देते हम '
कसम खुदा की ये जान भी दे देते हम

उम्र भर अपनी पलकों पे बिठाये रखते '
सारी दुनियां की निगाहों से छुपाये रखते|

मगर अफ़सोस हमारा इरादा टूट गया'
उम्र भर साथ निभाने का वादा टूट गया

अय मेरे दोस्त नया घर तुझे मुबारक हो
नई दुनिया नया शहर तुझे मुबारक हो |

हमारा क्या है दिल पे एक जख्म और सही'
प्यार की राह में ये एक रस्म और सही |

मगर ये तय है के हमको ना भूल पाओगे'
याद हम आयेंगे जब गीत गुनगुनाओगे|

गीत तुम गुनगुनाओगे तुम्हारी आदत है
रोओगे मुस्कराओगे तुम्हारी आदत है |

आज अपनी ही पहचान खो चुके हो तुम'
इस तरह खुद से अनजान हो चुके हो तुम |

हमने जो घर बनाया था कभी वो तोड़ दिया है'
जिस शहर में तुम थे वो शहर छोड़ दिया है |

हाँ मगर आज भी यादों की कसक बाकी है'
फजां में तेरी चूड़ियों की खनक बाकी है

याद करके हमें फिर से ना बुला लेना तुम '
अय मेरे दोस्त हो सके तो भुला देना तुम |

Views: 404

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by jagdishtapish on August 22, 2010 at 9:24pm
aadarniya sourav ji rana ji aapne rachna ko pasand kiya apne vichar diye hamari khush nashibi hai sourabh ji aapki panktiyon ko ham dil se taslim karte hai housla afjai ke liye aabhari hain ham aapke ---saadar

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2010 at 3:23pm
बहुत-बहुत बधाई जगदीशभाई.
और वो मीता.. जो साथ-साथ हुआ करता था.. हँसने पर हँसता था.. अपनी खुशियों में शरीक था.. आज वहाँ उस ओर चला गया जहाँ उसका परिचय ही बदल गया है. हम इस पार .. वो उस पार.
आपकी इस कविता की सुन्दरता यही है कि जो सोचो वही रूप अख़्तियार कर लेती है.. मात्र अपने शरीर से सम्बन्धित सम्बन्धों से लेकर समाज या राष्ट्र के बनने भटकने की अवधारणा तक को हम महसूस कर सकते हैं इन पंक्तियों में.

इन मनोदशाओं में मुझे इन पंक्तियों में स्वीकारिए -
खुश्बू तन की है फिर महकी आकर तुम इक बार..
करो दिलदार.. करो दिलदार.. करो दिलदार.. प्यार ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 22, 2010 at 9:24am
जगदीश सर
सुन्दर रचना है .....आचार्य संजीव जी की पंक्तियाँ याद आ गई

ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..
Comment by jagdishtapish on August 21, 2010 at 7:36pm
माननीय नवीन जी
अभी तो कागज के टुकड़े से डायरी तक भी नहीं पहुंची
और ओ बी ओ पर पोस्ट कर दी भाई साहेब किसी भी रचनाकार
की लेखनी में उसका अतीत वर्तमान और भविष्य छुपा होता है जिसे पारखी
निगाहें पढ़ ही लेती हैं |
मीठी सी चुटकी के रूप में आपकी जिज्ञाषा
एक दम स्वाभाविक है मात्र एक पंक्ति में आपने इतना गहरा
सवाल किया
इसलिए प्रसंगवश बहुत ईमानदारी से क्षमा चाहते हुए
चार पंक्तियों में अपनी बात कहने की जुर्रत कर रहा हूँ
ज़िन्दगी तुझ को जी रहा हूँ मैं --
अश्के गम हंस के पी रहा हूँ मैं '
अय मेरे गरेबां में झाँकने वालो
दामन है तार तार सी रहा हूँ में |
हम जानते हैं --- आप जरुर समझ गए होंगे की ----
नासूर बना करते हैं जो --वो जख्म पुराने होते हैं
सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2010 at 10:12am
आदरणीय जगदीश तपिश जी, अच्छी नज्म पेश किया है आपने, धन्यवाद,
Comment by jagdishtapish on August 21, 2010 at 9:25am
manniya aashish ji
dhaywad aapko
Comment by आशीष यादव on August 20, 2010 at 11:56pm
प्रणाम,
वाह, क्या गज़ब की लाईने हैं| अति सुन्दर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service