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हिसाब-किताब— डॉO विजय शंकर।


उम्र साठ-सत्तर तक की ,
आदमी पांच पीढ़ियों से रूबरू हो लेता है।
देखता है , समझ लेता है कि
कौन कहाँ से चला , कहाँ तक पहुंचा ,
कैसे-कैसे चला , कहाँ ठोकर लगी , ,
कहाँ लुढ़का , गिरा तो उठा या नहीं उठा ,
और उठा तो कितना सम्भला।
कर्म , कर्म का फल , स्वर्ग - नर्क ,
कितना ज्ञान , विश्वास , सब अपनी जगह हैं।
हिसाब -किताब सब यहीं होता दिखाई देता है।
बस रेस में दौड़ने वालों को सिर्फ
लाल फीता ही दिखाई देता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 4, 2020 at 8:08am

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी , रचना पर आपकी उपस्थिति के लिए आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 4, 2020 at 8:08am

आदरणीय रवि भसीन शाहिद जी , रचना को स्वीकृति प्रदान करने के लिए आभार , मुबारकबाद के लिए धन्यवाद , सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 5:35am

आ. भाई विजय शंकर जी सादर अभिवादन। उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 3, 2020 at 12:31am

आदरणीय Dr. Vijai Shanker साहिब, इस सुन्दर रचना पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ।

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