For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – July 2015 Archive (5)

गजल

गजल
2212 2212
हर बार मजहब मत उठा,
नाचीज यह गजब मत ढा।
जो हो न कुछ,खबर न सजा,
आका, कभी रहवर न बना।
रोटी पकी, अब चुप रहो,
जनता जली,जन को न जला।
झंडे उठा तू था गया,
दे कर उसे, तूने छला।
मजहब भला करता कि वह
हरदम रहा मरता चला?
ढोते रहे बस भार-से,
ईमान तो उनकी बला।
सुना कि मानेंगे सभी
मजहब,कभी बातें भला?
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

Added by Manan Kumar singh on July 31, 2015 at 12:03am — 2 Comments

गजल

भ्रमर,कली से---गजल

2122 2122 2122 212

सोचता हूँ क्या कली की बंदगी का नाम दूँ?

कह गया हूँ मैं बहुत, लो आ तुझे पैगाम दूँ।

रूप की आराधना हो साधना यह कामना,

इश्क करना चाहिये मैं नाम और इनाम दूँ।

घूम आया हर गली मैं बात प्यारी गुनगुना,

अब न टूटें दिल कभी यह देख मैं पैगाम दूँ।

राग-रस की कामना अनुरागियों की प्रीत है,

तू बसी मन में हमारे, और कौन मक़ाम दूँ?

रात तेरी, दिन तुझे री सुबह तुझको शाम दूँ,

पंखुड़ी के होंठ तेरे गीत उनके नाम दूँ।

कह रहे सब… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 30, 2015 at 8:49am — 4 Comments

गजल

दर्द होता अब नया है
मर्ज तू ही,तू दवा है।
बात तेरी पुरशकूं बस,
और सारी तो हवा है।
बादलों से माँगकर,लो
बेखुदी मन दे गया है।
ओढ़ ले या ले पहन तू
वक्त तेरा हो गया है।
मेघमाला सी बरस तू
खेत धानी रो रहा है।
देख तेरा ही जगाया,
अब सपन भी सो गया है।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on July 27, 2015 at 12:30pm — 4 Comments

हो गया सागर लबालब अब उफनना चाहिए, (गजल)

2122 2122 2122 212



हो गया सागर लबालब अब उफनना चाहिए,

चल रहा मंथन बहुत कुछ तो निकलना चाहिए।



आग यह कबसे दबायी है अभी अंतर सुनो,

कब तलक सुलगे उसे अब तो धधकना चाहिये।



बेइमां अब साहिबां सब क्यूँ हमारे हो गये?,

आज एक उनमें कहीं वाजिब निकलना चाहिये।



है सड़क से राह ले जाती सियासत तक अभी,

अब तुझे भी आप ही घर से निकलना चाहिये।



ले गये सब मोड़ते नदियाँ कहाँ ये बावरे?

इक नदी का रुख अभी भी तो बदलना चाहिये।…



Continue

Added by Manan Kumar singh on July 26, 2015 at 7:30am — 13 Comments

गीतिका(मनन कु सिंह)

गीतिका(मात्रा भार-20 मात्राएँ)

हम यादों की बाती जलाते रहे।

तुम यादों के दीपक बुझाते रहे।

हम यादों के सपने सजाते रहे,

तुम सपनों की अर्थी उठाते रहे।

हम सपनों की मूरत बनाते रहे,

तुम मूरत की सूरत छिपाते रहे।

हम सपनों की सूरत दिखाते रहे,

तुम सूरत से अपनी लजाते रहे।

हम बातें वो लिखकर बताते रहे,

तुम बातें भी अपनी मिटाते रहे।

हम नज़रों में तुमको बिठाते रहे,

तुम नज़रों से दूरी बनाते रहे।

तुम बरसे भी कहाँ,बस छाते रहे,

तुम सूखी-सी रेती… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 19, 2015 at 7:30pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service