For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Om Prakash Agrawal's Blog – May 2020 Archive (4)

ग़ज़ल

2212 1212 2212 1212



यूँ तो ये माहेरीन हैं मशहूर हैं ज़हीन हैं

फिर रगड़ें क्यों ज़मीन में कुर्सी को ये जबीन हैं





संसार है विचित्र यह नाकाम कामयाब सब

जो माहिर और ज़हीन हैं वह आज दीनहीन हैं





हर बात में है नुक़्ताचीं सर गर्मियों में है ख़लल

अक्सर ज़हीन लोग ही नाक़ाबिल-ए-यक़ीन हैं





बंदिश हज़ार थोप दीं तुम ये करो न वो करो

क्यों लड़कियां समाज में समझी गयीं रहीन हैं





जम्हूरियत तो नाम है चलता है हुक्म शाहों का

सब… Continue

Added by Om Prakash Agrawal on May 15, 2020 at 12:06pm — 6 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22 /112



सिर्फ़ कुर्सी का रास्ता हूँ मैं

यूं रियाया का रहनुमा हूं मैं



आदमी हूं अना है ग़ैरत है

फिर भी वक़्त आने पर बिका हूं मैं



रसन-ए-जोर-ओ-ज़ुल्म इतनी चली

रह गया ढांचा घिस गया हूं मैं



जश्न-ए-आज़ादी हूं मैं कैसे कहूँ

लगता है जैसे हादसा हूँ मैं



तोड़ पत्थर में बन गया पत्थर

अलविदा ख़ाब कह चुका हूं मैं



मुफ़लिसी का न ज़ात-ओ-मज़हब है

ये अगर कह दूं तो बुरा हूं मैं



जेब मुफ़लिस की.. दिल अमीरों… Continue

Added by Om Prakash Agrawal on May 11, 2020 at 12:04pm — 6 Comments

ग़ज़ल (मातृ दिवस पर विशेष)

2122 2122 2122 212



ख़ुद रही भूकी मुझे जी भर खिलाना याद है

मुफ़लिसी में टाट का 'स्वेटर' बनाना याद है



इम्तिहां कोई भी हो आशीष देती थी सदा

मां का हाथों से दही चीनी खिलाना याद है



एक मुर्शिद की तरह से हाथ सर पर फेरती

मैंने क्या कीं ग़लतियां इक इक गिनाना याद है



पाठशाला हम न जाएंगे ये ज़िद जब हमने की

पकड़े कान और खींच कर बस्ता थमाना याद है



बद-नज़र से दूर रखना था सियह टीका लगा

जो हरारत थोड़ी भी हो सहम जाना याद है



माँ सा तो…

Continue

Added by Om Prakash Agrawal on May 10, 2020 at 6:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल

सिवाय मंज़िल-ए-मक़्सूद गर क़िफ़ा होगी

मसाफ़त उम्र भर अपनी तो बे-जज़ा होगी

मरीज़-ए-इश्क़ हैं चारागरी भी कीजे जनाब

दवा-ए-क़ुरबत-ए-जानां से ही शिफ़ा होगी

चला हूँ जानिब-ए-कूचा-ए-यार उमीद लिये

सलाम आख़िरी होगा या इब्तिदा होगी

हमारे रिश्ते के उक़्दे खुले नहीं अब तक

लगी जो गिरह-ए-शक़-ओ-शुबह दोख़्ता होगी

हुआ तलत्तुफ़-ए-ख़ैरात -ए-आमिर आज ही क्यों

ज़रूर ख़ूं-ओ-पसीने की इक़्तिज़ा होगी

ज़रूर होंगें फ़साहत पे सामयीं मसहूर…

Continue

Added by Om Prakash Agrawal on May 7, 2020 at 8:30pm — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
9 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service