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AMAN SINHA's Blog (115)

ना तुझे पाने की खुशी ना तुझे खोने का ग़म

ना तुझे पाने की खुशी, ना तुझे खोने का ग़म 

मिल जाए तो मोहब्बत, ना मिले तो कहानी है 

ना आँखों में आँसू और ना चेहरे पर पानी  

बेचैन मोहब्बत में, बदनाम जवानी है 

ना तेरे साथ की चाहत,…

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Added by AMAN SINHA on October 4, 2022 at 12:38pm — 3 Comments

ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं

ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं, चिता पर अब तक चढ़ा नहीं

साँसे जब तक मेरी चलती है, तब तक जड़ मैं हुआ नहीं

जो कहते थे हम रोएंगे, कब तक मेरे ग़म को ढोएंगे?

पहले पंक्ति में खड़े है, जो कहते है कैसे सोएँगे?

 

मैं धूल नहीं उड़ जाऊंगा, धुआँ नहीं गुम हो जाऊँगा

हर दिल में मेरी पहूंच बसी, मर के भी याद मैं आऊँगा

कैसा होता है मर जाना, एक पल में सबको तरसाना

मूँह ढाके शय्या पर लेटा, मैं तकता हूँ सबका रोना

 

साँसों को रोके रक्खा है, कफन भी…

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Added by AMAN SINHA on September 26, 2022 at 2:00pm — No Comments

लडकपन

पहली बार उसको मैंने, उसके आँगन में देखा था 

उसकी गहरी सी आँखों में, अपने जीवन को देखा था

मैं तब था चौदह का, वो बारह की रही होगी 

खेल खेल में हम दोनों ने, दिल की बात कही होगी 

 

समझ नहीं थी हमें प्यार की, बस मन की पुकार सुनी 

बचपन के घरौंदे ने फिर, अमिट प्रेम की डोर बुनी 

उसे देखकर लगता था जैसे, बस ये जीवन थम…

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Added by AMAN SINHA on September 19, 2022 at 2:51pm — 8 Comments

कुछ ढंग का लिख ना पाओगे

जब तक तुमने खोया कुछ ना, दर्द समझ ना पाओगे 

चाहे कलम चला लो जितना, कुछ ढंग का लिख ना पाओगे 

जो तुम्हारा हृदय ना जाने, कुछ खोने का दर्द है क्या 

पाने का सुकून क्या है, और ना पाने का डर है क्या 

कैसे पिरोओगे शब्दों में तुम,  उन भावों को और आंहों को 

जो तुमने ना महसूस किया हो, जीवन की असीम व्यथाओं को 

जब तक अश्क को चखा ना तुमने, स्वाद भला क्या…

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Added by AMAN SINHA on September 12, 2022 at 2:09pm — No Comments

कितना कठिन था

कितना कठिन था बचपन में गिनती पूरी रट जाना 

अंकों के पहाड़ो को अटके बिन पूरा कह पाना 

जोड़, घटाव, गुणा भाग के भँवर में  जैसे बह जाना

किसी गहरे सागर के चक्रवात में फँस कर रह जाना

 

बंद कोष्ठकों के अंदर खुदको जकड़ा सा पाना 

चिन्हों और संकेतों के भूल-भुलैया में खो जाना 

वेग, दूरी, समय, आकार, जाने कितने आयाम रहे 

रावण के दस सिर के जैसे इसके दस विभाग रहे 

 

मूलधन और ब्याज दर में ना जाने कैसा रिश्ता था 

क्षेत्रमिति और…

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Added by AMAN SINHA on September 5, 2022 at 2:58pm — 2 Comments

हिंदी क्या है?

हिंदी क्या है?

बस एक लिपि?

नहीं

बस एक भाषा?

नहीं

बस एक अनुभव है?

नहीं

हिंदी आत्मा है,

सम्मान है, स्वाभिमान है

भारत की पहचान है

 

हिंदी क्या है?

बस एक बोली?

नहीं

बस एक संवाद का माध्यम?

नहीं

बस एक भाव?

नहीं

हिंदी जान है, गुमान है,

आर्याव्रत का अभिमान है

 

हिंदी क्या है?

एक रास्ता है

जिसपर…

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Added by AMAN SINHA on August 31, 2022 at 10:24am — No Comments

कुछ क्षण हीं शेष है अब तो

कुछ क्षण हीं शेष है अब तो, मिल जाओ तुम तो अच्छा है 

कैसे मैं समझाऊँ तुमको, जीवन का धागा कच्चा है 

साँस में आस  जगी है अब भी, तुम मुझसे मिलने आओगे 

आँखें बंद होने से पहले, आँखों की प्यास बुझाओगे 

 

तुम बिन मेरा…

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Added by AMAN SINHA on August 29, 2022 at 3:11pm — No Comments

अंतिम पाति

प्रथम प्रणाम उन मात-पिता को, जिन्होंने मुझको जन्म दिया 

शीर्ष प्रणाम उन गुरुजनों को, ज्ञान का जिन्होंने आशीष दिया 

फिर प्रणाम उन पूर्वजों को, मैं जिनका वंशज बनकर जन्मा 

शेष प्रणाम उन मित्रजनों को, जिनसे है मुझको प्रेम घना 

मैं न भुला उन बहनो को, राखी जिसने बांधी थी 

जिसकी सदा रक्षा करने की, मैंने कसमें खाई थी 

छोटे-बड़े सब भाई मे,रे…

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Added by AMAN SINHA on August 22, 2022 at 12:30pm — No Comments

एक जनम मुझे और मिले

एक जनम मुझे और मिले, मां, मैं देश की सेवा कर पाऊं 

दूध का ऋण उतारा अब तक, मिट्टी का ऋण भी चुका पाऊं 

 

मुझको तुम बांधे ना रखना, अपनी ममता के बंधन में 

मैं उसका भी हिस्सा हूँ मां, तुमने है जन्म लिया जिसमे  

 

शादी बच्चे घर संसार, ये सब मेरे पग को बांधे है 

लेकिन मुझसे मिट्टी मेरी, मां, बस एक बलिदान ही मांगे है 

 

सब हीं आंचल मे छुपे रहे तो, देश को कौन संंभालेगा 

सीमा पर शत्रु सेना से, फिर कौन कहो लोहा…

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Added by AMAN SINHA on August 15, 2022 at 11:43am — No Comments

मैं ऐसा हीं हूँ

गुमसुम सा रहता हूँ, चुप-चुप सा रहता हूँ 

लोग मेरी चुप्पी को, मेरा गुरूर समझते है 

भीड़ में भी मैं, तन्हा सा रहता हूँ 

मेरे अकेलेपन को देख, मुझे मगरूर समझते हैं 

        

अपने-पराये में, मैं घुल नहीं सकता 

मैं दाग हूँ ज़िद्दी बस, धूल नहीं सकता         

मैं शांत जल सा हूँ, बड़े राज़ गहरे है 

बहुरूपिये यहाँ हैं सब, बडे …

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Added by AMAN SINHA on August 9, 2022 at 9:47am — No Comments

बस मेरा अधिकार है

ना राधा सी उदासी हूँ मैं, ना मीरा सी  प्यासी हूँ 

मैं रुक्मणी हूँ अपने श्याम की, मैं हीं उसकी अधिकारी हूँ 

ना राधा सी रास रचाऊँ ना, मीरा सा विष पी पाऊँ

मैं अपने गिरधर को निशदिन, बस अपने आलिंगन मे पाऊँ

क्यूँ जानु मैं दर्द विरह का, क्यों काँटों से आंचल उलझाऊँ 

मैं तो बस अपने मधुसूदन के, मधूर प्रेम में गोते खाऊँ

क्यूँ ना उसको वश में कर लूँ, स्नेह सदा अधरों पर धर लूँ 

अपने प्रेम के करागृह में, मैं अपने…

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Added by AMAN SINHA on August 1, 2022 at 1:50pm — No Comments

एक दिन मुझ सा जी लो

एक दिन मुझ सा जी लो 

हाँ बस एक दिन मुझ सा जी लो 

जाग जाओ पाँच बजे तुम और बर्तन सारे धो लो 

पानी भरने के खातिर फिर सारे नल तुम खोलो 

कपड़,पोछा,झाड़ू करकट बस एक बार तो कर लो 

बस एक दिन मुझ सा जी लो   

नाश्ते खाने की लिस्ट बनाओ 

राशन, बाज़ार करके…

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Added by AMAN SINHA on July 23, 2022 at 11:42am — No Comments

शराब

पा लेता हूँ जहां को तेरी चौखट पर लेकिन 

तेरी एक बूंद से मेरी प्यास नहीं बुझती 

भुला सकता हूँ मैं अपना वजूद भी तेरी खातिर पर 

तुझसे एक पल की दूरी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती 

भूल जाता हूँ मैं ग़म अपने होंठो से लगाकर तुझे 

जब तक छु ना लूँ तुझे मेरी रफ्तार नहीं बढ़ती 

बड़ा सुकून मिलता है नसों मे तेरे घुलने से 

किसी भी साज़ मे ऐसी कोई बात…

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Added by AMAN SINHA on July 15, 2022 at 10:20am — No Comments

जो मैं होता

जो मैं होता गीत कोई तो तुम भी मुझको गा लेते 

जो मैं होता खामोश परिंदा तो अपना मुझे बना लेते 

जो मैं होता फूल कोई तो गजरा मुझे बना लेते 

जो मैं होता इत्र कोई तो तन पर मुझे लगा लेते

 

जो मैं होता काजल तो तुम टीका मेरा कर…

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Added by AMAN SINHA on July 11, 2022 at 1:01pm — No Comments

मैं जताना जानता तो

मैं जताना जानता तो बन बैरागी यूं ना फिरता 

मेरे ही ख़िलाफ़ ना होता आज ये उसूल मेरा 

मैं ठहरना जानता तो बन के यूं भंवरा ना फिरता 

मेरे पग को बांध लेता फिर कोई अरमान मेरा 

 

मैं बताना जानता तो दाग़ लेकर यूं ना…

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Added by AMAN SINHA on July 6, 2022 at 11:40am — No Comments

किराए का मकान

दीवारें हैं छत हैं

संगमरमर का फर्श भी

फिर भी ये मकान अपना घर नहीं लगता

चुकाता हूँ

मैं इसका दाम, हर तारीख पहली…

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Added by AMAN SINHA on July 1, 2022 at 11:30am — No Comments

ले चल अपने संग हमराही

ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में

जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में 

चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ 

क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात 

जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती…

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Added by AMAN SINHA on June 27, 2022 at 12:25pm — 2 Comments

कब चाहा मैंने

कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो 

कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो 

कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो 

कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो 

कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो 

कब…

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Added by AMAN SINHA on June 24, 2022 at 10:59am — No Comments

यायावर

मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा 

ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा 

ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं

कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं 

ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा…

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Added by AMAN SINHA on June 21, 2022 at 11:20am — No Comments

आह्वान

जागो मेरे वीर सपूतो, मैंने है आह्वान किया 

आज किसी कपटी नज़रों ने मेरा है अपमान किया 

किसी पापी के नापाक कदम, मेरी छाती पर ना पड़ने पाए 

आज सभी तुम प्रण ये कर लो, जो आया, कुछ, ना लौट के जाने पाये 

दिखला दो तुम दुश्मन को, तुम भारत के वीर सिपाही…

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Added by AMAN SINHA on June 17, 2022 at 11:15am — No Comments

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय."
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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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