For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संदेश नायक 'स्वर्ण''s Blog (9)

तो क्या बुरा मानोगे ?

रात आँखों में बिता दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

मैं आज बत्तियां जला दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

बैठे हो सर झुकाए, कुछ गुमशुदा से बन के,

आज घूँघट फिर उठा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

है कंपता बदन ये, आँखों में कुछ नमी है,

लाओ सर जरा दबा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

लगती हो खोई-खोई, किस सोच में पड़ी हो ?

ग़र फिक्र सब मिटा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

ख़ामोशी क्यूँ है इतनी ? अरे गाते थे कभी हम,

मैं कुछ गीत…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on December 30, 2014 at 8:14pm — 9 Comments

मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ

मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ,

हुकूमत के मुंह पर इक तमाचा जड़ रहा हूँ । 

भूख की कलम से, मैं पेट के पन्नों पर,,

बेबस गरीबी की इक कहानी गढ़ रहा हूँ । 

कानून क्यों है बेबस?यही खुद से बूझते मैं,

इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ । 

आ जाएगी अमन की दुल्हन मेरे वतन में,

इसी आस में उम्मीदों की घोड़ी चढ़ रहा हूँ । 

इंक़लाब के सफर में ज़ज़्बों की पोटली ले,

हिम्मत की तेज़ आती गाड़ी पकड़ रहा हूँ…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 30, 2014 at 12:53pm — 5 Comments

गहनों का भार

बहू के बदन पर देख,

'गहनों का भार'... 
छलक उठा ससुराल वालों की आँखों में, सोया हुआ प्यार । 
सास! बलाएँ लेकर, बहू को गले से लगाएँ,
ससुर! मूंछों पर ताव देते, ख़ुशी से फूले न समाएँ,
ननद! भाभी की सुहाग-सेज, फूलों से सजाएँ,
पति! गुलाब-जल छिड़क, पत्नी का घूंघट उठाएँ ॥ 
बहू के बदन पर देख,
'गायब गहनों का भार'... 
छलक उठा ससुराल वालों की आँखों में, हिंसक व्यवहार । 
सास! बद्दुआएँ देकर,…
Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 15, 2014 at 11:27am — 6 Comments

बच्चों को अपने पहले इंसान हम बना दें

सूनी पड़ीं हैं कब से, रिश्तों की महफ़िलें ये,

आओ हम तुम मिल के, ये महफ़िलें सजा दें।

छेड़ी जो तान तुमने, मायूसी के शहर में,

हम भी हंसी की छोटी सी डुगडुगी बजा दें॥

     

बंद हैं दरवाजे, बहरों की बस्तियों में,

तो हम भी बन के गूंगे, इन्हें कोई सदा दें।  

कुछ ग़म की है उधारी, कुछ क़र्ज़ बेबसी का,

दे बेक़सी के सिक्के, ये क़र्ज़ कर अदा दें॥

     

खाते लज़ीज़ व्यंजन, समझोगे क्या ग़रीबी,

होता नहीं निवाला, किसी भूखे को खिला दें।  

सर पर हमारे बैठे, हैं…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 14, 2014 at 10:00am — 8 Comments

मेरा हाथ थाम लो तो सबको जवाब हो जाए।

ज़िंदगी की आखिरी करामात हो जाए ,

चलो आज मौत से मुलाकात हो जाए ।

इस उम्मीद में निकला हूँ, मिल जाए कोई इंसां ,

बरसों चुप रहा, अब किसी से बात हो जाए ।

बरसात आ गई है, कुछ बीज मैं भी बो दूँ ,

शायद हरी-भरी फिर ये क़ायनात हो जाए ।

अक्सर ही पूछता हूँ, मैं ये सवाल खुद से ,

क्या करूँ कुछ ऐसा , कि वो खुशमिज़ाज़ हो जाये।

उम्र से ही पहले दिखने लगा हूँ बूढ़ा ,

चलो सफ़ेद बालों में, अब ख़िज़ाब हो जाए ।

पीठ…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 1:30pm — No Comments

सरकार की रेल

एक ओर हैं ,

जनरल की बोगीं। 

जिसमें बैठते हैं... 

दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,

कुछ योगी,

और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,

असंख्य रोगी। 

दूसरी ओर हैं ,

उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।

जिनमें बैठते हैं... 

भोगों से घिरे हुए,

भोग भोगते भोगी,,

और ग़रीबी से अछूते,

कई निरोगी।

कितना अनोखा,

यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,

जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,

ये सरकार…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 10:00am — 6 Comments

ममता का मोल

नौ महीने तक सींच रक्त से, जिसको कोख में पाला,

आज उसी बेटे ने माँ को, अपने घर से निकाला।

जर्जर होती देह लिए, माँ ने बेटे को निहारा,

मानो उसके जीने का अब, छूट रहा हो सहारा॥

भूल गया गीली रातें, जब रोता था चिल्लाता था, 

हाथ पैर निष्क्रिय थे तेरे, पड़े-पड़े झल्लाता था।

तब त्याग नींद! तेरी जगह लेट, सूखे में तुझे सुलाती थी,

अपने सीने से लिपटा, बाँहों में तुझे झुलाती थी॥

भूल गया वो सूखे दिन, जब गर्मी से घबराता था,

सन्नाटे की चादर ओढ़े,…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 12, 2014 at 2:33pm — 8 Comments

हिन्द-सपूत

मातृभक्ति गुंजित स्वर तेरे, सिंहनाद सा करते हैं,,

तेरा साहस शौर्य देख, तेरे भय से शत्रु मरते हैं । 

वेग तेरी आशा का भारी, है आंधी तूफानों पर,,

तेज तेरे चेहरे का भारी,  बिजली की मुस्कानों पर । 

शक्ति का अंबार छिपा है, तेरे दृढ़ संकल्पों में,,

जीवन का हर गीत लिखा है, तूने प्रेम के पन्नों में । 

संबल तेरा पाकर ही, निर्बल ने है लड़ना सीखा,,

देख अडिग विश्वास तेरा, पाषाणों ने अड़ना सीखा । 

धीर हो तुम! गंभीर हो…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 11, 2014 at 11:30am — No Comments

तुम मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न लो

तुम मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न लो,

बस यूँ ख़ामोश रह कर मेरी जान न लो । 

लोग कोसेंगे तुम्हें, तुमसे करेंगे दिल्लगी,

तुम अपने माथे पर, मेरी उजड़ी हुई पहचान न लो । 

बस्तियां खाली पड़ीं, कई लोग देंगे आसरा,

इक रात बसने के लिए, मेरे दिल का सूना मकान न लो । 

बेजुबां बेदम सा होकर, मैं पड़ा तेरी राह में,

मुँह फेर कर गुजरो मगर, मेरी आँखों की जुबान न लो । 

मैं बड़ा नाजुक हूँ, दिल पर बोझ भारी है बहुत ,

न गिरूँ…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 10, 2014 at 11:30am — No Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service