For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – October 2015 Archive (9)

तुम तो कमाल करते हो मिश्रा जी (इस्लाह के लिए ग़ज़ल)

221 2122 2122
सौ सौ सवाल करते हो मिश्रा जी।
कितना बवाल करते हो मिश्रा जी।।

मतलब परस्त युग में प्रीत मिलेगी?
झूठा ख़याल करते हो मिश्रा जी।।

जीवन सदा परीक्षा से है गुज़रा।
किसका मलाल करते हो मिश्रा जी।।

कोई नहीं है यहाँ सुननें वाला।
काहें कराल करते हो मिश्रा जी।।

दुनिया के दर्द खुदमें भर लिया है।
मुझको निहाल करते हो मिश्रा जी।।

औरों के अश्क खुद की आँख भीगी?
तुम तो कमाल करते हो मिश्रा जी।।

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 29, 2015 at 11:40pm — 8 Comments

राम जी रावणी मन हुआ है (दशहरा विशेष)

2122 122 122 2122 122 122



किस तरह से दशहरा मनायें; राम जी रावणी मन हुआ है।

राम नामी वसन पर न जायें, राम जी रावणी मन हुआ है।।



वासना से भरा है कलश ये, हो गया कामनाओं के वश में।

भेष साधू का झूठा, भुलायें राम जी रावणी मन हुआ है।।



स्वर्ण का ये महल चाहता है, मन्त्र बस धन का ये बांचता है।

किस तरह से "स्वयं" को जगायें, राम जी रावणी मन हुआ है।।



स्वार्थ का आचरण हर घड़ी है, नेक नीयत दफ़न हो गयी है।

आज खुद को विभीषण बनायें, राम जी रावणी मन…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 22, 2015 at 7:00pm — 6 Comments

तो बेहतर था

1222 1222 1222 1222



तेरे नैनों के पर्दे को उठा लेती तो बेहतर था।

निगाहों को मेरे मुख पर टिका देती तो बेहतर था।।



हाँ बेहतर तो यही होता कि तुझमें खो ही जाता मैं।

औ तुम भी मेरी आँखों में समा जाती तो बेहतर था।।



न खाली हो सके तुम भी बहुत मशरूफ थे हम भी।

घड़ी कोई हमें तुमसे मिला देती तो बेहतर था।।



पता है, मेरे इस दिल में कई सपने सुहाने थे।

तू अपने ख़्वाब सारे जो बता देती तो बेहतर था।।



यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 18, 2015 at 11:00pm — 12 Comments

तुमको मिली सजा है

2212 122 2212 122



रुसवा किया जो यारी, तुमको मिली सज़ा है।

फ़तवा हुआ है ज़ारी, पढ़लो मिली सज़ा है।।



बदनामियों की ज़द में, वो आ गए तो सदमा।

भिजवा दिया है भारी, सिसको मिली सज़ा है।।



उनकी निगाह में थी, जो भी हाँ छवि तुम्हारी।

हटवा दिया है सारी, भटको मिली सज़ा है।।



चोरी से चाहने की, उसनें ख़ता रपट में।

लिखवा दिया तुम्हारी, भुगतो मिली सज़ा है।।



खुद चाँद ने तुम्हारे, हिस्से की रात सारी।

लिखवा दिया है कारी, सुनलो मिली सजा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 17, 2015 at 11:28am — 4 Comments

रूप मदिरा पान का पाकर निमन्त्रण फँस गये

2122 2122 2122 212



दिल की धड़कन का उन्हें देकर नियंत्रण फँस गये।

रूप मदिरा पान का पाकर निमन्त्रण फँस गये।।



चित्त की हर भित्ति पर बस रंग उनका दिख रहा।

भित्तियों पर उनकी छवि का करके चित्रण फँस गये।।



मन भ्रमर चञ्चल जो बंजारे सा था तो ठीक था।

उनमें ही अवधान का करके एकत्रण फँस गये।।



कल्पना की वाटिका में तितलियों की भीड़ थी।

मन के उपवन में उन्हें देकर आमन्त्रण फँस गये।।



इस तरह प्यासे नहीं थे चक्षु ये मेरे कभी।

दृष्टि से…

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 12:49am — 3 Comments

जाने कितने ग़म (ग़ज़ल)

1222 1222 1222 1222

हैं हँसते मुस्कुराते हम छिपाते जानें कितने ग़म।

हाँ चलते गुनगुनाते हम मिटाते जानें कितने ग़म।।



हमारे होंठ जब लरज़े सुनाएँ दास्ताँ अपनी।

अचानक रूबरू मेरे हैं आते जानें कितनें ग़म।।



कभी रोते हुए बच्चे कभी तो छटपटाती माँ।

विवशता युक्त आँखों से बताते जानें कितने ग़म।।



वो जो चलती हुई गाड़ी से पटरी पर गयी फेंकी।

बिलखती आँख के आंसूँ सुनाते जानें कितने ग़म।।



दिखी है लाश लटकी पेड़ पर जब अन्नदाता की।

निवाले में तभी से… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 13, 2015 at 11:39pm — 14 Comments

कस्तूर हो गयी हो

2212 122 2212 122



क्या आदतों से अपनी, मज़बूर हो गयी हो।

आँखों से मेरी काहें, तुम दूर हो गयी हो।।



सपनों में उनसे मिलता, कुछ हाल चाल कहता।

लेकिन बहुत बुरी हो, मग़रूर हो गयी हो।।



आती नहीं कभी भी, मिलने तू हमसे निदिया।।

यूँ छोड़ कर हमें तुम, मफ़रूर हो गयी हो।।



जगता रहा हूँ कब से, बीती हैं कितनी रातें।

पंकज से दुश्मनी कर, मशहूर हो गयी हो।।



तुझमें मेरे सनम में, कुछ साम्य लग रहा है।

सच सच बता रहा हूँ, कस्तूर हो गयी… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 6, 2015 at 6:13pm — 9 Comments

पाठ गीता का सुनाने के लिए आया नहीं

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122 2122 2122 212

==================================

मैं समस्यायें गिनानें के लिए आया नहीं।

धर्म नैतिकता सिखानें के लिए आया नहीं।।



सो रहे हैं आत्मा को बेचकर इंसान जो।

मत डरें उनको जगानें के लिए आया नहीं।।



जानता हूँ कल्कि युग की मान मर्यादा भी है।

नीतिगत बातें बतानें के लिए आया नहीं।।



तुम मगन अपनी लगन में ही रहो ओ साथियों।

राह में कंटक बिछाने के लिए आया नहीं।।



आचरण की सीख दूं, मुझको… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 4, 2015 at 12:38am — 16 Comments

प्रीत की रीत में प्रणय शामिल। मन्त्र अर्पण के बोलिये आख़िर।।

फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन।

फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन।।

========================================

( 2122 / 1212 / 22)

(रूबरू आ/प हो लिये/ आख़िर।

ख़ूबरू अक् /श खोलिये/ आख़िर।।)

=======================================

रूबरू आप हो लिये आख़िर।

ख़ूबरू अक्श खोलिये आख़िर।।



रूह से जो मिलन की है ख़ाहिश

आये हैं शर्म क्यों लिये आख़िर।।



आपके सुर सुनूँ तो मैं झूमूँ।

कूक कानों में घोलिये आख़िर।।



तन जो हिरणी सा आपका… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 1, 2015 at 5:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2022

2021

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service