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Sushil Sarna's Blog (886)

दोहा त्रयी. . . .

अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।

नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।

थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली  लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।

सुशील सरना / 20-7-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on July 20, 2021 at 12:00pm — 10 Comments

अभिव्यक्ति .......

अभिव्यक्ति ......

कैसे व्यक्त करूँ

अपने प्रेम की गहराई को

अभिव्यक्ति के अवगुंठन में

एक खीज है

तुम्हें छूने की

अबोले स्पर्शों से

कब तक लड़ूँ मैं

तुम ही कहो न

अपने प्रेम की गहराई को

कैसे व्यक्त करूँ मैं

हां! मैं तुम्हें प्यार करूँगी

भोर की उजास में

साँझ की प्यास में

तृप्ति की आस में

हर हलाहल पी जाऊँगी

मर के भी जी जाऊँगी

बस मेरी तन्हाई में

कुछ देर और जी जाओ

तुम ही कहो

तुम्हारे प्यार में आखिर…

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Added by Sushil Sarna on July 15, 2021 at 3:32pm — 10 Comments

सुलगते अँधेरे . . .

सुलगते अँधेरे  .......

न जाने आज

मन इतना उदास क्यों है

लगता है

स्मृतियों की सीलन से

मन की दीवारें

भुरभुरा सी गई हैं

यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब

जैसे गिरती दीवारों पर

मन की बेबसी पर

अट्टहास लगा लगा रहे हों

कितनी ढीठ है

ये बरसाती हवा

जानती है मेरी आकुलता को

फिर भी मुझे छू कर

मुझसे मेरा हाल पूछती है

अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे

आहटें

मन के वातायन पर गूँजती…

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Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments

मन का साहिल. . . .

मन का साहिल ......

जाने कब मेरे अन्तस में

भावनाओं का सागर उफान मारने लगा

भावों की वीचियों पर

चाहत की कश्ती

अठखेलियां करने लगी

दिल के किसी कोने में

एक चाहत उभरी

कि मैं हौले से छू लूँ

फिर वही

अधर दलों पर ठहरी

उल्फ़त की गंध

चुपके से

डूब जाऊँ

किसी मदहोश भंवरे की तरह

पुष्प आगोश में

पराग का रसपान करते हुए

आकंठ तक

और मिल जाए

मेरी चाहत की कश्ती को

मेरे मन का…

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Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments

आशा ......



आशा .......

बहुत कोशिश की

मगर हार गई मैं

उस अनुपस्थिति से

जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है

एक खौफ के लिबास में

मुझे ठेंगा दिखाते हुए

भोर से लेकर साँझ तक

दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच

हमेशा झकझोरती है

किसी ग़ैर की मौजूदगी

मेरे अंतःस्थल को

उस की अनुपस्थिति के लिए

निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं

आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर

थकान की पराकाष्ठा पर

जब बदन निढाल होकर…

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Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments

पाकीज़गी .......

पाकीज़गी ......

मैं

जिस्म से रूह तक

तुम्हारी हूँ

मेरी नींदें तुम्हारी हैं

मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं

मेरी आस भी तुम हो

मेरी प्यास भी तुम हो

मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो

मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो

मगर ख़याल रहे

मेरे जिस्म को

दिखावटी पर्दों से नफ़रत है

मेरे पास आना तो

ज़माने के बेबस लिबास को

ज़माने में ही छोड़ आना

क्योंकि

मेरे जिस्म को

पाकीज़गी पसंद है

सुशील सरना

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments

काँटा

मैं काँटा हूँ
जाने कितने काँटे चुभा दिये लोगों ने
मेरे बदन में अपने शूल शब्दों के
जमाने ने देखी तो सिर्फ
मुझसे मिलने वाली वेदना को देखा
मेरी तीक्ष्ण नोक को देखा…
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Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments

कहानी.........

कहानी ..........

पढ़ सको तो पढ़कर देखो

जिन्दगी की हर परत

कोई न कोई कहानी है

कल्पना की बैसाखियों पर

यथार्थ की हवेलियों में

शब्दों की खोलियों में

दिल के गलियारों में

टहलती हुई

कोई न कोई कहानी है

पत्थरों के बिछौनों पर

लाल बत्ती के चौराहों पर

बसों पर लटकी हुई

रोटी के लिए भटकी हुई

आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज

कोई न कोई कहानी है

सच

पढ़ सको…

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Added by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments

मन पर दोहे ...........

मन पर दोहे ...........

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । 1।
हर मन को मिलता नहीं, मन वांछित परिणाम ।
मन फल की चिन्ता करे, मन अशांति का धाम ।2।…
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Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments

गरीबी ........

गरीबी..........
कैसी होती है गरीबी
शायद
तिमिर के गहन आवरण को
भेदने में असफल होती
जुगनू की
क्षीण सी रोशनी…
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Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments

लौट भी आओ न ....

लौट भी आओ न ....
लौट भी आओ न
देखो !
प्रतीक्षा की सीढ़ियों पर
साँझ उतरने लगी है
भोर अपने वादे से मुकरने लगी है
आँखों की मुट्ठियों से तन्हाई फिसलने लगी है
मेरी…
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Added by Sushil Sarna on March 11, 2021 at 8:00pm — 10 Comments

चाँदनी

चाँदनी ,,,,,,,
चमकने लगे हैं
केशों में चाँदी के तार
शायद
उम्र के सफर का है ये
आखिरी पड़ाव
थोड़ा जलता
थोड़ा बुझता
साँसों का अलाव…
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Added by Sushil Sarna on March 2, 2021 at 7:30pm — 4 Comments

दोहा त्रयी : वृद्ध

दोहा त्रयी : वृद्ध


चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।


लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।


वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 23, 2021 at 8:24pm — 6 Comments

नारी

हृदय की अनन्त गहराईयों में
प्रतिबिंबित करती है
प्रेम में बुद्ध हो जाने वाले
उस आदि पुरुष को
जो उसे पूर्णता प्रदान करे
नर
अपने हृदय लोक में
रेखांकित करता…
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Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments

अर्थ

कहाँ इतना आसान होता है
किसी बात का अर्थ निकालना
हर भाव की व्याकरण अलग होती है
हर कोई अपने हिसाब से
हर भाव के अर्थ साधने का प्रयास करता है
किसी के लिए जिन्दगी का अर्थ
साँसों का चलायमान होना है
किसी के लिए साँसों के बाद है जिन्दगी
अधरों की…
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Added by Sushil Sarna on February 7, 2021 at 2:30pm — 3 Comments

शायद नहीं. . . . . . . .

शायद नहीं. . . . . . . .
बोलते हैं
और बहुत बोलते हैं
जाने क्या-क्या बोलते हैं
मगर
क्या वही बोलते हैं
जो चाहते हैं बोलना
शायद नहीं…
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Added by Sushil Sarna on January 29, 2021 at 5:39pm — 5 Comments

आशंका :,,,,,,,,,

आशंका :,,,,,,,,,
वृक्ष की सबसे ऊँची टहनी पर
एक लम्बी चोंच वाला पक्षी
चुपचाप
अपनी आँखें बन्द किये
अपने धवल पंख समेटे हुए
शायद किसी तपस्या में लीन था…
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Added by Sushil Sarna on January 26, 2021 at 3:52pm — 7 Comments

दस्तक :

दस्तक :

वक़्त बुरा हो तो

तो पैमानें भी मुकर जाते हैं

मय हलक से न उतरे तो

सैंकड़ों गम

उभर आते हैं

फ़िज़ूल है

होश का फ़लसफ़ा

समझाना हमको

उनके दिए ज़ख्म ही

हमें यहां तक ले आते हैं

वो क्या जानें

कितने बेरहम होते हैं

यादों के खंज़र

हर नफ़स उल्फ़त की

ज़ख़्मी कर जाते हैं

तिश्नगी बढ़ती गई

उनको भुलाने के आरज़ू में

क्या करें

इन बेवफ़ा क़दमों का

लाख रोका

फिर भी

ये

उनके दर तक ले जाते हैं

उनकी…

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Added by Sushil Sarna on November 20, 2020 at 8:43pm — 2 Comments

बड़ी नज़ाकत से हमने .....

बड़ी नज़ाकत से हमने .....

बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
अपने -अपने दर्दों को
मुस्कराहटों में ढाला है
मुद्दा ये नहीं कि
चराग़ बेवफ़ाई का
जलाया किसने
सच तो ये है अश्क चश्म में
दोनों ने संभाला है
ये हाला है उल्फत की
उल्फत का ये प्याला है
पाक मोहब्बत का दोनों के
दिल में पाक शिवाला है
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है

सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित

Added by Sushil Sarna on November 18, 2020 at 6:07pm — 2 Comments

अनजाने से .....

अनजाने से .....

मैं

व्यस्त रही

अपने बिम्ब में

तुम्हारे बिम्ब को

तराशने में

तुम

व्यस्त रहे

स्वप्न बिम्बों में

अपना स्वप्न

तराशने में

हम

व्यस्त रहे

इक दूसरे में

इक दूसरे को

तलाशने में

वक्त उतरता रहा

धूप के सायों की तरह

मन की दीवारों से

हम के आवरण से निकल

मैं और तू

रह गए कहीं

अधूरी कहानी के

अपूर्ण से

अफ़साने…

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Added by Sushil Sarna on November 4, 2020 at 7:30pm — 7 Comments

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