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Shashiprakash saini's Blog – December 2011 Archive (6)

नये है रंग

नये है रंग

रुत है नयी तस्वीर बनाने की

नये साज़ नयी आवाज़ में

कुछ नयी धुन गुनगुनाने की

नयी सुबह है नये सूरज के जगमगाने की

खठी मीठी यादे पीछे छोड़ आने की

नयी उम्मीद नई आशाएं जगाने की

जो बीता उसे सम्मान से विदा करे

और नये बरस के स्वागत में दीप जलाने की

लौ से शोला और शोलो से लपटों में बदल जाने की

दिलो से दूरियाँ  मिटाने की

बस यही गीत गुनगुनाने की

:शशिप्रकाश सैनी

Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 10:00am — No Comments

अपनी गलतियों का बोझ आप ही ढोता हूँ

अपनी गलतियों का भोझ आप ही  ढोता हूँ

गंगा खुद मैली है मै वहा पाप नही धोता हूँ


पाप धोने के लिए बहुत है  आंख के  आसू
रात रो अंतर्मन पश्चाताप से ही भिगोता…
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Added by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 3:00am — No Comments

अंधेरा है कितना

रातो के हो गए है पुजारी

कि दिन की खबर नहीं है

पैसे की है ये दुनिया

मेरा ये शहर नहीं है

दिन में भी ये जलाते है बत्तियाँ इतना

ना जाने यहाँ अंधेरा है कितना

आदमी अपने साये पे भी शक करता है

हाथ हाथ मिलाने से डरता है



पैसो से हर चीज तोलने लगा हूँ

की मै भी पैसो की जुबा बोलने लगा हूँ

नीद बेचता हू बेचता हू सासे भी

बेचे है त्यौहार बेचीं है उदासी भी

हसी बेचीं है…

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Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की

ये ख़ासियत रही उस मुलाक़ात की

जुबा कुछ कह न सकी आँखों ने सब बात की

 

ये दुनिया है सब पैसे से चलते है

खबर लेता नहीं कोई बिगड़े हालात की

 

जो करते है लडकियों पे छीटा-कसी

न जाने किस घर के है उपज है किस ख़यालात की

 

हमसे रूठी है यु बात भी करती नहीं

नाराज़गी है न जाने किस रात की

 

किस गम में भीगी है छत की सीढ़ियां "सैनी"

किसके जज़्बात छलके किस आंख ने इतनी बरसात की

 

: शशिप्रकाश…

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Added by shashiprakash saini on December 30, 2011 at 11:00am — 1 Comment

मुखौटा हटाओ

भीड़ में सब मुखौटे है 

इंसा कहा है

जिसकी सूरत पे सीरत दिखे 

वो चेहरा कहा है



खिड़किया यु बंद करली है

की हम खोलते ही नहीं

दुनिया से करते है बात

पडोसियो से बोलते ही नहीं 

न बगल में खुशी न मातम का पता 

पर ये मालूम दुनिया में क्या घटा 





कमरे बंद रखने से सिर्फ सडन होगी

खिडकिया खोलोगे तो हवा…

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Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 10:29am — No Comments

मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका

रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका
 
विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने…
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Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments

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