For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amod Kumar Srivastava's Blog – November 2013 Archive (6)

ठंड आ गई है ...

सुनो उससे कहना...

ठंड आ गई है ...

जरा मेरे अहसासों को

धूप दिखा दें ....

और ख्यालों को भी

सूखा दें ...

ठंड आ गई है ...

रिश्तों की गर्माहट

बहुत जरूरी है ...

गुलाबी मौसम की तरह ...

जिंदगी भी हँसेगी ...

ठंड आ गए है...

जरा अहसासों को धूप दिखा दो... 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Amod Kumar Srivastava on November 24, 2013 at 8:50pm — 12 Comments

कैसा लगता है ....

बताओ तो, कि कैसा लगता है ... 

किसी अंजान जगह पर 

किसी अंजान सफर पर 

किसी अंजान का साथ 

खुशी के वो अंजान पल 

साथ गुज़ारना, साथ चलना 

वो एहसास, वो पल 

बताओ तो, कि कैसा लगता है .... 

और फिर अचानक ... 

एक दिन 

किसी अंजान का बिछड़ जाना 

किसी अंजान बातों पर 

किसी अंजान कारणो पर 

फिर लौट कर न आना 

सिर्फ इंतज़ार रह जाना 

किसी से कुछ न कह पाना 

सिर्फ और सिर्फ यादें रह जाना 

बताओ तो, कि…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on November 21, 2013 at 8:17pm — 8 Comments

जान जाओगे ...

कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं 

किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं 

कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे 

कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं 

उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो 

मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ... 

तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को  

तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं .... 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Amod Kumar Srivastava on November 19, 2013 at 7:00pm — 12 Comments

सलाम अर्ज है ....

सुनो !!

वक्त मत लिया करो ... 

समय से तारीफ करा करो 

हाँ मगर सच्ची तारीफ़ें 

और समय से मुबारकें 

तुम्हारी दुआ कबूल हो 

उस खुदा को मंजूर हो 

जिसने मुझे भेजा यहाँ 

तुम जैसे दोस्तों के दिलों में

मिला एक आसियाँ

मैं कितना भी उड़ लूँ 

आज मगर सच कहता हूँ 

प्यार से अपने बांध लेते हो 

वरना मैं क्या होता हूँ 

मुस्कराहट में मेरी, तुम्हारी नज़र है 

कलम से कुछ नाराज़ अक्षर हैं 

वरना कहाँ मैं तुमसे…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on November 15, 2013 at 10:16pm — 9 Comments

गुफ्तगू

जो बातें होठों तक न आ पाएँ 

उसे कागजों पर 

उकेरा करो .... 

दिल में न रखा करो 

ओंठ न सिया करो 

कुछ बातें लिखनी मुश्किल हो 

तो आँखों से कह दिया करो 

जब तन्हा हुआ करो 

तो आवाज़ दिया करो 

जो हसरत तेरी चाहत मे हो 

मेरे दामन से ले लिया करो 

गुफ्तगू

जम कर किया करो ....

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Amod Kumar Srivastava on November 14, 2013 at 10:30pm — 10 Comments

बाज़ार

यहाँ परछाईयों का सौदा होता है

हर चीज यहाँ बिकाऊ है

हर पल तमाशा लगता है

तुम अपना दाम कहो

छुप के नहीं खुले आम कहो

क्या लोगे अपनी यारी का

क्या लोगे अपनी दिलदारी का

मेरा गम लोगे कितने में

तुम प्यार करोगे कितने में

सब जज़बात तुम मेरे नाम करो

हमराही तुम अपना दाम कहो

पर दाम चुकाने के खातिर

हम अपनी जेब टटोलें तो

बस प्यार मिलेगा बहुत सारा

पर ये सिक्के अब कहाँ चलते हैं

ये दुनिया बे-एतबारी की .....

ये अर्ज है हर व्यापारी की… Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:01pm — 16 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service