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Dimple Sharma's Blog – September 2020 Archive (2)

मेरे ख़त

221 2122 221 2122

ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त/1

जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त

इस बार लिखना तय था वरना तो जाने कब से/2

आ जा रहे थे ख़्वाबों में उनके घर मेरे ख़त

अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3

चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त

सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4

उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त

होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5

अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त

इनकार लिखना…

Continue

Added by Dimple Sharma on September 6, 2020 at 3:07pm — 10 Comments

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा (ग़ज़ल)

1212 1122 1212 22  

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1

ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा

तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2

रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा

तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3

जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा

मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4

महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा

था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5

उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा

जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6

तो लो खरीद लिया…

Continue

Added by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:00pm — 7 Comments

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