यथार्थवाद और जीवन
वास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर अकेलेपन और असंतोष की जड़ बन जाती है। जीवन का सार केवल सच्चाई तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें दया, सहानुभूति और समझदारी का भी समावेश होता है। जब मुझे नई सोच और नए विचारों की आवश्यकता होती है, तो मैं उन लोगों की खोज करता हूँ जो मेरी आलोचना करें, जो मेरी बातों पर उंगली उठाएँ। क्योंकि केवल आलोचना के द्वारा ही हम अपनी सीमाओं को पहचान…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on July 1, 2025 at 3:00pm — 2 Comments
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