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सतविन्द्र कुमार राणा's Blog – June 2017 Archive (2)

वीर चेतक(आल्हा छ्न्द)/सतविन्द्र कुमार राणा

*वीर चेतक*(वीर छ्न्द)



घोड़े देखे बहुत जगत में,देखा कब चेतक-सा वीर



बिजली-सी चुस्ती थी जिसमें लेकिन रहता रण में धीर



कद था छोटा ही उसका पर,लम्बा उसका बहुत शरीर



मारवाड़ की अश्व-नस्ल में राणा ने पाया वह बीर





हल्दी घाटी समर क्षेत्र में,राणा उसपे रहे सवार



चेतक मुख पर सूंड लगाए,गज पर करता चढ़-चढ़ वार



राणा का भाला चलता था,संग चली टापों की मार



आगे-पीछे हटता चेतक,दिखती रण कौशल में धार





हल्दी घाटी… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on June 8, 2017 at 8:30pm — 9 Comments

विरह गीत

(आधार बह्र ए मेरे)



रात चाँदनी और ये तारे

नहीं सुहाते बिना तुम्हारे-2





साथ रहो तुम तब है होली

तुम्ही नहीं जो फिर तो हो ली

तुमसे जीवन में सारे रंग

तुम बिन जीवन ही है बे रंग



गम का दरिया तर जाता है

तुम रहते जब साथ हमारे।



झूम-झूम कर आता सावन

लेकिन प्यासा तरसे जीवन

विरह काल में बूंदें गिर कर

चलें जलाती मेरा तन-मन



साथ तुम्हारा नहीं अगर तो

सभी फुहारें हैं अंगारे।



जले जेठ-सा जाड़ा तुम… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on June 4, 2017 at 3:30pm — 4 Comments

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