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Anurag Singh "rishi"'s Blog – June 2013 Archive (6)

"गज़ल-ए-जिंदगी"

मुझसे मेरी हयात ऐसी दिल्लगी करे

मंजिल का मेरी फैसला आवारगी करे



तुझसे भी हैं ज़रूरी दुनिया में और काम

सब को भुला के कौन तेरी बंदगी करे



बेपीर बेमुरव्वत मुझसे न पूंछ कुछ भी

मेरा बयान-ए-हाल ये बेचारगी करे



मुद्दत से थोड़े ख्वाब सहेजे हैं आँख में

की इंतज़ार-ए-आब जैसे तिश्नगी करे



हर रोज सबसे छुप कर किसकी हैं ये दुआएं

शामों में आफताब सी ताबिन्दगी करे



रोऊँ तो ये हंसाए, हँसता हूँ तो रुलाए

मुझको यूँ परेशान मेरी जिंदगी… Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 29, 2013 at 12:13pm — 13 Comments

"वादा करो"

मै खड़ा हूँ यूँ बांहों को खोले हुए

मेरी बाँहों में आने का वादा करो

मै जहाँ ये भुला दूँगा सुन लो मगर

मुझको दिल में बसाने का वादा करो



मै जो अब तक अकेला हूँ जीता रहा

धुंधले ख्वाबों को आँखों से सीता रहा

ये जो कोरी पड़ी है मेरी जिंदगी

रंग अपना चढ़ाने का वादा करो



मै खड़ा हूँ यूँ बांहों को खोले हुए

मेरी बाँहों में आने का वादा करो



तुम जो रूठी तो तुमको मना लूँगा मै

तुमको पल भर में अपना बना लूँगा मै

मै भी रूठूँगा…

Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 24, 2013 at 6:30pm — 16 Comments

"शुक्रिया"

यूँ पाठ जिंदगी का पढ़ाने का शुक्रिया

की बेरुखी से मुझको भुलाने का शुक्रिया



गुज़रे हुए निशान कुछ रेती पे पैर के

यादें यूँ अपनी छोड़ के जाने का शुक्रिया



कोई तो चाहिए ही था इक हमसफ़र तुझे

दिल में किसी को और बसाने का शुक्रिया



रातों से हो गयी है मुहब्बत सी अब हमें

ख्वाबों में ही दीदार कराने का शुक्रिया



दिल मोम का है सोंच के रोता रहा सदा

पत्थर कि तरहा दिल को बनाने का शुक्रिया



मुझको लगा ये काफ़िला मेरे ही साथ है…

Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 10, 2013 at 1:15pm — 11 Comments

गज़ल - "परवाज़"

भले ही आज जीवन में, तेरे कायम अँधेरा है

इसी दुनिया में ही लेकिन, कहीं रौशन सवेरा है



मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी

मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है



कभी हिंदू कभी मुस्लिम. रहे हैं हारते हरदम

सियासत खेल ऐसा है, न तेरा है न मेरा है



कुतरते ही रहे है देश को, हरदम जहाँ नेता

इसे संसद न कहियेगा, ये चूहों का बसेरा है



न जलती है न मरती है, महज़ कपड़े बदलती है

“ऋषी” इस रूह की खातिर, ये जीवन एक डेरा है …

Continue

Added by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 7:30am — 13 Comments

"वापस न जाइये"

दिल के करीब आइये कुछ तो बताइए
यूँ आग को सुलगा के भला क्यों बुझाइए ?

दुनिया के डर से आप को तनहा न छोडिये
बस आँख बंद कीजिए मुझमे समाइये

रोयी है बहुत आँख मुकम्मल ये जिंदगी
पलकों पे मेरी फिर नए सपने सजाइए

जीवन के ओर छोर का कुछ भी पता नही
यूँ जिंदगी में आइये वापस न जाइए

मुमकिन है थोड़ी गलतियाँ होती रही “ऋषी”
खुद को न ऐसे कोसिए न ही सताइए

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Added by Anurag Singh "rishi" on June 3, 2013 at 7:35pm — 7 Comments

"दिल में उठता पीर देखो"

दिल में उठता पीर देखो
द्रोपदी का चीर देखो

मोल जिसका खो गया है
आँख का वो नीर देखो

दिल में जो सीधे लगे बस
शब्द के वो तीर देखो

फिर हुआ बलवा कहीं पे
खो गया जो वीर देखो

थी कभी नदियाँ यहाँ पर
बह गया जो छीर देखो

सांवरे को भूल कर के
आज राँझा हीर देखो

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक व अप्रकाशित रचना

Added by Anurag Singh "rishi" on June 1, 2013 at 6:00pm — 6 Comments

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