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SHARAD SINGH "VINOD"'s Blog – May 2015 Archive (2)

-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :-

-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :-  (संसोधित)

खींच अहं के मग से डग प्रभु,

रख लें अपने चरणों में ||

है परम कांति अरु चरम शांति जो,

और किसी ना शरणों में |

सजा हुआ मद की बेड़ी मे,

जड़ा हुआ हूँ कहीं सिखा पर,

तोड़ एकांकी अहं का आसन,

मिला लें पद रज-कणों में |

खींच अहं के मग से डग प्रभु,

रख लें अपने चरणों में ||

यह राह नहीं है सीधा-सादा ;

मैं निकल पड़ा जिसपर |

रसहीन…

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Added by SHARAD SINGH "VINOD" on May 25, 2015 at 8:00pm — 12 Comments

प्रकृति की पड़ी मार सबने सहा

हमें ईश से ढेर सारे गिले |

नहीं अब सहारा कहीं पे मिले |

प्रभो शक्ति जितना हमें है दिया |

बड़ी मुश्किलों से सहारा किया ||

 

प्रकृति की पड़ी मार सबने सहा |

महल स्वप्न का देखते ही ढहा |

छिना छत्र माता पिता का कहाँ ?

बची फ़िक्र भूखी बहन का यहाँ ||

 

अभी गति हमारी बड़ी दीन है |

बिना नीर जैसे दिखे मीन है |

प्रकृति के कहर से बहन भी डरी |

बड़ी मुश्किलों से डगर है भरी ||

 

मौलिक व…

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Added by SHARAD SINGH "VINOD" on May 16, 2015 at 7:47pm — 2 Comments

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