हाँ वो ख्वाब हैं
वो ख्वाब ही हैं जब तुम
तख़य्युल के परों से उड़ते
चाँद का नूर चुरा लाती हो
और तोड़ कर बादलों के रेशमी टुकड़े
गूंध कर उनको चांदनी में फिर
किसी अनजान ज़मीं पर उसके
महल तामीर किये हैं तुमने
और उन महलों में बसा रखें हैं वो सारे मंज़र
जो हक़ीक़त में बदल जाएं तो
दर्द दुनिया से चले जाएं हमेशा के लिए
हाँ वो ख्वाब हैं जब तुम
चेहरे पे हवाओं की शोखियाँ…
Added by saalim sheikh on May 22, 2016 at 11:37am — 3 Comments
Added by saalim sheikh on May 8, 2016 at 11:41pm — 5 Comments
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