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Anvita's Blog – May 2020 Archive (7)

"लोग"

लोग इससे ज्यादा

क्या करेंगे ...छीन लेंगे हॅसी

रोक लगा देंगे कहकहों पर,और

घोंट देंगें दम..

मुस्कुराहटों का।

लोग ,लगा देंगे प्रतिबंध

गति,लय और लोच पर।

कामनाओ के छतनार वृक्ष की

हर ड़ाली काट-छाॅट कर;बना देंगे बोनसाई, और

रोंप देंगे,

गमलों में ।

छीन लेंगे कलम,या फिर, काट देंगे अंगुलियां ।

क्रिया के पश्चात प्रतिक्रिया, एक

शाश्वत सत्य है; समय का पहिया

कभी तो घूमेगा प्रतिकूल, और

लौटाएगा मिट्टी को,उसकी सारी ऊव॔रा,… Continue

Added by Anvita on May 31, 2020 at 3:49pm — 10 Comments

बेहतर तो

भीगी दुःखती ऑखे लेकर,

हम सपनों को पाने निकले,

मन के चिटके दप॔ण में,

गीला अक्स सजाने निकले।

जीवन शतरंज की गोटी, सिर्फ

हराए हरेक चाल पर,ऊपर बैठा

गजब खिलाड़ी ,हम भी

क्या दीवाने निकले ।

ऑख तौलती भार स्वप्न का,

होंठ हंसी की परिधि नापते,

सौदागर इस बस्ती में, क्या- क्या तो

कमाने निकले ।

महज उदासी पाई मन ने,

अपनेपन के रिश्तों में,

कुछ कदमों तक साथ चले थे,

बेहतर तो बेगाने निकले।





अन्विता ।

मौलिक एवं…

Continue

Added by Anvita on May 18, 2020 at 12:30pm — 4 Comments

ताना-बाना

उलझे-उलझे से,ताने-बाने को
फिर- फिर
नये रंग में रंगता है,
मेरी किस्मत का रंगरेज,
पल-पल
रंग
बदलता है ।
उजला कभी,कभी स्याह
पीला कभी नीला,जैसे
सुखःदुख;
मन की हांड़ी में,
धींमे-धींमे खदकता है,
छल की रेशमी
चादरों में, लिपटे
सुनहरे,रूपहले सपने उलट-पलट
मिलाता है;पर,
नियति का,बल.....
नहीं
निकलता है ।


अन्विता ।


मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 18, 2020 at 8:13am — 7 Comments

"अब नहीं "

इस अंधेरे पक्ष में

दद॔ की

टीसती लकीरें

छुपा दी हैं

चाँदनी की

सिमटी तहों में ,अब;

अकेला

निकले भी

चांद तो

नहीं दिखेंगी

झुर्रियाँ, उदासी की,

उसके पीले चेहरे में

बांधकर ड़ाल दी हैं

उदासियों की गठरी,

चुप के अंधे कुएँ में

बचाकर;भावनाओं के

छापामारों से,

कामनाओं के सूखे बीज

दबा दिए हैं,

मन की बंजर धरती में; जानता है मन

अब नहीं हरियाएगा

कोई सावन....इस जीवन में ।



अन्विता

मौलिक एवं… Continue

Added by Anvita on May 16, 2020 at 8:54pm — 6 Comments

"पालकी आंसुओं की"

लम्हा- लम्हा
जहाँ पे भारी था, होंठ अनवरत
मुस्कुराए हैं
सच के साये से भी,जहाँ, रहा परदा
रिश्ते ऐसे भी कुछ निभाए हैं ।
फांस सी कभी हथेली में, कभी तलवों के
फूटते छाले
प्यार की हर नदी रही सूखी
दूर तक वृक्ष हैं
न,
साये हैं।
रेत तपती है
पांव के नीचे,
होंठ चटके हैं
प्यास से,लेकिन;
भेज दो स्वप्न
सब विदा करके,
पालकी आंसुओं की
लाए हैं ।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 10, 2020 at 11:23pm — 3 Comments

"माँ नहीं है "

माँ नहीं है
बस-नहीं है
कोई धागा कोई कतरन
कोई स्वेटर कोई उधड़न
या जिंदगी की
कोई उलझन
माँ वहां दिखती है ।
सिकुड़ते रिश्ते
उधड़ती तुरपाई
तुम्हारे नाम रिश्तों की
परछाई ।
माँ नहीं भूली तुम्हें मैं
मेरे बच्चों में निहित तुम्हारी
परछाई ।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 9, 2020 at 6:03pm — 2 Comments

क्या पता ।

विदा लेता है कोई मन से इस तरह
कि जैसे
पलक भर झुकी हो
और दृश्य बदल जाए।
रात भर ऑसुओ से भीगा गिलाफ तकिये का
सुबह धुल जाए।सूजी हुई आंखें
पानी के छींटो से ताजा दम हो
काजल और बिखर जाए।बाकी हो बहुत कुछ कहना
और सांस का तार टूट जाए।
सूरज पर रहती हैं निगाह चौकस
चांद का क्या पता, कब निकले कब
ढल जाए।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित
अन्विता ।

Added by Anvita on May 7, 2020 at 9:00pm — 5 Comments

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