फिर उठीं है जाग देखों शहर में शैतानियाँ
दर्द आहों में बदलने क्यूँ लगी कुर्वानियाँ
जान लेने को खड़े तैयार सारे आदमी
हर जगह बढ़ने लगी है आज कल विरानियाँ
घूमते थे रात दिन हम आपकी ही चाह में
जब समझ आया खुदा तो हो गईं आसानियाँ
जोड़ तिनके है बनाया आशियाँ तुम सोच लो
आबरू इस में छुपी है मत करो नादानियाँ
गंध आने है लगी क्यूँ फिर यहाँ बारूद की
याद कर तू बस खुदा को छोड़ बेईमानियाँ
आदमी मजबूर देखो हो गया इस दौर में
खून में शामिल…
ContinueAdded by munish tanha on March 10, 2019 at 8:00pm — 3 Comments
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