For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

satyendr sengar
  • Male
  • India
Share on Facebook MySpace

Satyendr sengar's Friends

  • डॉ. नमन दत्त
  • rajendra kumar
  • guddo dadi
  • Er. Ganesh Jee "Bagi"
  • PREETAM TIWARY(PREET)

satyendr sengar's Groups

 

satyendr sengar's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Rewa
Native Place
Rewa
Profession
Advocate
About me
Aap ko bata sakun Aisa kuch nahin.

satyendr sengar's Photos

  • Add Photos
  • View All

Satyendr sengar's Blog

Ghazal

इक अंधेरा टिका  कब से मीनार पर

क्या कहें इस ज़माने के किरदार पर



हाथ का भी निवाला जो छीनेगा वो

स्वप्न सोने के रख देगा  बाज़ार पर



सब है डूबे तिजारत की घुड़दौड़ में

अब नज़र कौन डालेगा  बीमार पर



रहनुमाओं के सुख, भत्ते-वेतन सभी

गाज बन कर गिरेंगे ख़रीददार पर



जुगनुओं  के  सहारे  चली  ज़िंदगी

कोई  चंदा  न उतरा था  दीवार पर



बिकती हैं जो कलम इक पुरस्कार में

वो कसीदे लिखें  आज सरकार  पर



रात भर  अध्र्य  जिसको  चढ़ाते रहे

वो  लुटेरा… Continue

Posted on January 4, 2011 at 2:55pm

ग़ज़ल

जो  ग़ल्तियाँ हुईं थीं  उसी का  सिला है ये
बारूद  घर में रखने का  फल ही मिला है ये
 
दुनियाँ से कह रहे थे  हम  फसाना शाँति का
बस ये नहीं बताया.. कि दिल भी छिला है ये

जब जिसका मन किया है हमसे खेल कर गया
मुझको  कोई बताये  कि   कैसा   किला है ये

अपनों की  साजिशों  से  मात  बारहा  मिली
द्वापर से  चलता आया.. ऐसा सिलसिला है ये

घर फूस का बनाया  उसमें आग भी रख ली
कुर्सी की ख्वाहिशों का  फूल ही  खिला है ये

Posted on January 3, 2011 at 2:54pm

मेरा वतन

मुझको   मेरा  वतन   पुर   अमन   चाहिए

तहज़ीब  अपनी   गंग   ओ  जमन  चाहिए



ये  राम  की  ज़मीन  है  गौतम  की ये ज़मीं

नानक  भी  मिलेगा  यहीं  रहमान  भी  यहीं

सब  आ  सकें  इतना  बड़ा  ज़हन  चाहिए



झगड़े   फ़साद   लूट   न  हो  मेरे देश में

या   रब  ग़रीबी  भूख  न  हो  मेरे देश में

मिल बांट  कर के  खाने  का चलन चाहिए



तुमने  बिछा  रखी  यहाँ  कितनी बड़ी चैiसर

मुहरे  बना  दिये  हमें  इस  तरहा  बाँट कर

टुकड़े   नहीं    समूचा   इक   गगन  चाहिए



क्यूं … Continue

Posted on January 3, 2011 at 2:00pm

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 8:40am on January 24, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service