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Pradeep Rai
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Male
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Buxar
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Teara
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At 11:46pm on October 26, 2017, Pradeep Rai said…
"जमीं हूँ मैं"

मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं

मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं

अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को

वहाँ पे ढूँड रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं

मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था

मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं

वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी

कहीं कहीं हूँ कहाँ हूँ कहीं नहीं हूँ मैं

वो इक किताब जो मंसूब तेरे नाम से है

उसी किताब के अंदर कहीं कहीं हूँ मैं

सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ

ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं

यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यज़ीद भी था

हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीं हूँ मैं

ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी

मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं
At 11:45pm on October 26, 2017, Pradeep Rai said…
किसी सूरत में न नखरे तुम दिखाया करो
माँ जो कुछ भी दे चुप चाप खा जाया करो

माँ जैसी दुनियाँ में कोई चीज नहीं होती
और माँ यहाँ पर नसीब नहीं होती
At 11:40pm on October 26, 2017, Pradeep Rai said…
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुंआ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूं के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
"राहत इन्दौरी"
 
 
 

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