नेह बदरिया नीर नदी बन
आंखों आंखों स्वप्न सधे हैं
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
नख बन भाव कुरेदें बातें
यादें मोहक धूमिल छवि की
टूट रहे पतवार हृदय के
तूफानी लय है सांसों की
पर्वत से तटबंध दिलों पर
सकुचाते उदगार बंधें हैं।
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
मुनरी कंगन छागल बिछुए
सबकी सबसे रार हुई है
गजरे की अनबन बालों से
अबकी पहली बार हुई है
आतुर है श्रृंगार…
ContinuePosted on July 9, 2020 at 11:26pm — 2 Comments
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