For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Bhupender singh ranawat
Share on Facebook MySpace
 

Bhupender singh ranawat's Page

Latest Activity

Samar kabeer commented on Bhupender singh ranawat's blog post मेरा सपना
"जनाब भूपेंद्र सिंह राणावत जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें । एक निवेदन ये कि रचना पर आई टिप्पणी के उत्तर यहीं देना उचित होता है,संज्ञान लें ।"
Mar 31, 2020
Bhupender singh ranawat left a comment for Samar kabeer
"shri maan aapki hosla afjayI k liye aabhar"
Mar 29, 2020
Bhupender singh ranawat posted a blog post

मेरा सपना

कल नींद में हमने एक सपना देखा।देखा कि ,मेरा देश बदल गया है।।जाति ,धर्म का नहीं है रगड़ाऊंच-नीच का खत्म है झगड़ा।।नारी का नहीं है शोषण,गरीब को भरपूर है पोषण।सब के, भंडार भरे हैं,निठल्ले भी काम करें हैं।ना अपराधों की कही है गंध,थाना ,कचहरी सब है बंद।नेता सब सुधर गए हैं,भ्रष्टाचारी ना जाने किधर गए हैं।ना रिश्वत है ,ना चित्कार कहीं,है शांति चहु ओर,पर जब नींद खुली तो देखा, हकीकत है कुछ और।।द्वारा भूपेंद्र सिंह राणावतमौलिक एवं अप्रकाशितSee More
Mar 29, 2020
Samar kabeer commented on Bhupender singh ranawat's blog post कोरोना पर जीत मंत्र
"जनाब भूपेंद्र सिंह राणावत जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।"
Mar 28, 2020
Samar kabeer commented on Bhupender singh ranawat's blog post मानव तेरी करनी
"जनाब भूपेंद्र सिंह राणावत जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।"
Mar 28, 2020
Bhupender singh ranawat posted a blog post

कोरोना पर जीत मंत्र

आप अपने आप को ,कर लो घर में बंद।फिर खुशियां ही खुशियां है, मुश्किल के दिन चंद।।सेनीटाइजर या साबुन से, धो लो अपने हाथ।ज्यादा गर याद आए अपनों की, तो फोन पर कर लो बात।।हम सबको मिलकर लड़नी है, कोरोना की लड़ाई।।एक दूजे से दूरी ही ,इसकी है दवाई ।।कानून तुम मान लो ,सुने कर दो रास्ते ।।हेलो हाय छोड़ के, बस करो नमस्ते ।।दाल रोटी से काम चला लो, छोड़ो तुम मेवा ।।घर पर रहकर कर लो, देश की सेवा।।द्वारा भूपेन्द्र सिंह राणावतSee More
Mar 26, 2020
Bhupender singh ranawat posted a blog post

मानव तेरी करनी

विवेक पर जब मन हावी हो जाता है,तभी तो ऐसा मंजर नजर आता है।हे मानव, तू अड़ा रहा मनमानी पे,किया निरंतर खिलवाड़ प्रकृति से।हे अधम, प्रगति के मद में,तूने प्रकृति का तिरस्कार किया।बस, मैं ही मैं हूं ,तू इस खुश फहमी में जिया।पर, मत भूल, प्रकृति जब विकराल रूप धर लेती है,फिर वह सांसे भी हर लेती है।अब भी समय है, हे मानव ,संभल जा,अपनी हरकतों से बाज आ।सुन, ए नादान ,गर जीना है सुकून से,तो प्रकृति की शरण में जा।वो मां है, तुझे अब भी अपना लेगी,बस, उसके आंचल में बच्चों सा मचल जा।द्वारा भूपेंद्र सिंह…See More
Mar 25, 2020
Bhupender singh ranawat left a comment for Samar kabeer
"आदरणीय Samar Kabeer साहब रचना की सराहना  के लिए आपका बहुत बहुत आभार । आपने जो advice दी हैं उनका में ध्यान रखूँगा। पुनः आपका आभार ।"
Jan 21, 2020
Samar kabeer commented on Bhupender singh ranawat's blog post इंतज़ार
"जनाब राणावत जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें । टंकण त्रुटियों पर ध्यान दें ।"
Jan 19, 2020
khursheed khairadi commented on Bhupender singh ranawat's blog post इंतज़ार
"लाज़वाब आदरणीय राणावत साहब। ओपन बुक्स ऑनलाइन पर स्वागत है।"
Jan 14, 2020
Bhupender singh ranawat commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post मनुष्य और पयोनिधि
"Shandaar rachna"
Jan 13, 2020
Bhupender singh ranawat commented on vijay nikore's blog post स्वप्न-मिलन
"Nice"
Jan 12, 2020
Bhupender singh ranawat posted a blog post

इंतज़ार

मुद्दत से इंतजार में बैठे थे हम जिनके ,वो आये भी तो अजनबियों कि तरहां।के तोड़ गये अरमानो के घरोंदों को वो ऐसे,उजाड़ देती है खिज़ा गुलशन को जिस तरहां।बेहाल दिल हे और रूह भी हमारी ,बहता है दर्द जिस्म में अब ऐसेजैसे मचलता हे पानी दरिया में जिस तरहां।के अश्क़ अब बहते नहीं इन आँखों से,बस आहें ही निकलती हे अब सांसो से ।ज़िन्दगी हमारी अब हो गई हे कुछ ऐसे,जैसे खाती हे नाव हिलोरे तूफां में जिस तरहां।अब   ना ख्वाब हैं ना चाह कोई,हो गए हैं अरमान जब्ज़ सिने में कुछ ऐसे,जैसे हो जाती है दफ़न लाश कब्र में जिस…See More
Jan 12, 2020
Bhupender singh ranawat is now a member of Open Books Online
Jan 8, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
Bundi rajasthan
Native Place
Kuradiya jahazpur bhilwara
Profession
Lecturer
About me
It is a extraordinary

Bhupender singh ranawat's Blog

मेरा सपना

कल नींद में हमने एक सपना देखा।

देखा कि ,मेरा देश बदल गया है।।

जाति ,धर्म का नहीं है रगड़ा

ऊंच-नीच का खत्म है झगड़ा।।

नारी का नहीं है शोषण,

गरीब को भरपूर है पोषण।

सब के, भंडार भरे हैं,

निठल्ले भी काम करें हैं।

ना अपराधों की कही है गंध,

थाना ,कचहरी सब है बंद।

नेता सब सुधर गए हैं,

भ्रष्टाचारी ना जाने किधर गए हैं।

ना रिश्वत है ,ना चित्कार कहीं,

है शांति चहु ओर,

पर जब नींद खुली तो देखा, हकीकत है कुछ और।।



द्वारा भूपेंद्र… Continue

Posted on March 29, 2020 at 10:15am — 1 Comment

कोरोना पर जीत मंत्र

आप अपने आप को ,कर लो घर में बंद।
फिर खुशियां ही खुशियां है, मुश्किल के दिन चंद।।

सेनीटाइजर या साबुन से, धो लो अपने हाथ।
ज्यादा गर याद आए अपनों की, तो फोन पर कर लो बात।।

हम सबको मिलकर लड़नी है, कोरोना की लड़ाई।।
एक दूजे से दूरी ही ,इसकी है दवाई ।।

कानून तुम मान लो ,सुने कर दो रास्ते ।।
हेलो हाय छोड़ के, बस करो नमस्ते ।।

दाल रोटी से काम चला लो, छोड़ो तुम मेवा ।।
घर पर रहकर कर लो, देश की सेवा।।
द्वारा भूपेन्द्र सिंह राणावत

Posted on March 26, 2020 at 7:48pm — 1 Comment

मानव तेरी करनी

विवेक पर जब मन हावी हो जाता है,

तभी तो ऐसा मंजर नजर आता है।

हे मानव, तू अड़ा रहा मनमानी पे,

किया निरंतर खिलवाड़ प्रकृति से।

हे अधम, प्रगति के मद में,

तूने प्रकृति का तिरस्कार किया।

बस, मैं ही मैं हूं ,तू इस खुश फहमी में जिया।

पर, मत भूल, प्रकृति जब विकराल रूप धर लेती है,

फिर वह सांसे भी हर लेती है।

अब भी समय है, हे मानव ,संभल जा,

अपनी हरकतों से बाज आ।



सुन, ए नादान ,गर जीना है सुकून से,

तो प्रकृति की शरण में जा।

वो मां है,… Continue

Posted on March 25, 2020 at 2:11pm — 1 Comment

इंतज़ार

मुद्दत से इंतजार में बैठे थे हम जिनके ,

वो आये भी तो अजनबियों कि तरहां।

के तोड़ गये अरमानो के घरोंदों को वो ऐसे,

उजाड़ देती है खिज़ा गुलशन को जिस तरहां।

बेहाल दिल हे और रूह भी हमारी ,

बहता है दर्द जिस्म में अब ऐसे

जैसे मचलता हे पानी दरिया में जिस तरहां।

के अश्क़ अब बहते नहीं इन आँखों से,

बस आहें ही निकलती हे अब सांसो से ।

ज़िन्दगी हमारी अब हो गई हे कुछ ऐसे,

जैसे खाती हे नाव हिलोरे तूफां में जिस तरहां।

अब   ना…

Continue

Posted on January 12, 2020 at 11:28am — 2 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service