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   पारदर्शिता  और जन नेताओ की मानसिकता 

पारदर्शिता तो घर,परिवार, रिशते-नाते, मित्रों, और पडौसियों के साथ भी 
व्यवहार में पारदर्शिता मानव मन की स्वच्छता के लिए आवश्यक होनी 
चाहिए | किन्तु सामाजिक संस्थाओ और राजनैतिक दल के कार्यकरताओ, 
जनता के नुमाइंदो में पारदर्शिता का होना निहायत जरूरी है | अगर सूचना 
के अधिकार के कानून की तरह पारदर्शिता रख कार्य करने के लिए भी कोई 
कानून या आचार-संहिता लागू की जा सके तो ही भ्रष्टाचार पर एवं अनैतिक 
आचरण पर अंकुश लग सकता है, इसके अभाव में लोक पल अधिनियम भी 
भरष्टाचाररोक पाने में सक्षम नहीं होगा |
     जहाँ तक वर्तमान सरकार और समस्त विपक्षी राजनातिक दलोंका सवाल 
है, किसी भी दल में जन लोक पल, व्हिसल ग्रोवर, जैसे कानून पारित कराने 
तक में दिलचस्पी नहीं है, तो पारदर्शी आचरण की तो बहुत दूर की बात है |
आज जितने सांसदों, विधायको और राजनैतिक संगठन में कार्यकराने वाले 
राजनेताओ पर आपराधिक और चारित्रिक हनन के आरोप लगते रहे है, उस 
पर चुनाव आयोग तक भी कुछ कर पाने में असमर्थ दिखाई देता है | और तो 
और, अन्ना, रामदेव बाबा और सुब्रमण्यम स्वामी जैसे व्यक्ति भी काफी 
आन्दोलन रत रहने और कानूनी लड़ाई लड़ने के बावजूद सरकार का कुछ कर 
पाना तो दूर,संसद की अवमानना के और संसद द्वारा उनके विरुद्ध निंदा प्रस्ताव
के शिकार हो रहे है | केन्द्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी (सी बी आई) जैसी संस्था जब तक 
सरकार से स्वतंत्र वैधानिक अस्तित्व में नहीं आएँगी जब तक पारदर्शिता केवल 
नैतिक सिद्धांत के व्यक्तियों तक ही सिमित रहेगी और जनता का कोई भला होने
 वाला नहीं हैं |
    शीशे के मकान जिसके होंगे, वही दूसरे पर पत्थर फैकने की हिम्मत नहीं करता | 
यहाँ तो राजनेता, पुलिस, सरकार अधिकारी, व्यापारी अर्थात सभी लोगो की लिप्तता 
के चलते पारदर्शिता की बात करना कुछ बैमानी से लगाती है |  यहाँ तो सैक्षानिक 
संस्थानों में गुरुओ तक में भरष्टाचार और अनैतिक संबंधों की खबरे पढने को मिलाती 
है | अतः अब तो विवेकानंद, गाँधी, राम मोहन राय, जैसे मसीहा ही पारदर्शिता की बात 
कर कुछ हद तक नैतिकता का पाठ पढ़ासकते है |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर   

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