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अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली ग़ज़ल -
                  मैथिली ग़ज़ल - १

कहू कोना ? जे, आम आदमी
बनि कय की - की भोगलौं हम |
खून - खुनामह भेल करेजा,  कोना - कोना क ? जोगलौं हम ||
१ ||


बड़ उल्लास भेल बचपन में,  हम  बड़  सुन्दर,  काबिल  छी,
गौरव  छल  जे -   बाबू - बौआ 
बनि,  कोरा  में  झुललौं  हम || ||

भेलौं  किशोर,  मों
न  बड़  हुलसल,  मुट्ठी  में  संसार  छलय,
धरती 
सँ  आकाश  लोक  धरि,   लहरेलौं  और   बुललौं  हम || ||

जखन  वयस्क  भेलौं और  आयल  कंधा पर दुनिया के भार,
यौवन  के  गौरव  में  डूबल,  अपन  शक्ति  के  खोजलौं   हम || ||

देश - समाजक  और  कुटुम्बक,  अनुभव  के  कडवाहट  में,
बेर - बेर बनि कय अभिमन्यु ,  चक्र - व्यूह  में  फँसलौं  हम ||
||

जाहि घडी तक आन लोक सब दुश्मन छल, मदमस्त छलौं,
बज्र माथ पर बजरल लेकिन,  ओकरो  स
हि  कय बचलौं हम || ||

अपन खून सँ चोट जे  लागल,  सब  बुद्धि - बल  बिसरायल,
सुनल  बात  छल  एक  बेर  के,   लाख  बेर  पर  मरलौं  हम ||
||

जीवन  सच  में  बड़  भारी  छल,  आदर्शक पथ और कठिन,
राम - नाम अवलंब रहल त,   कुहरि -
कुहरि  क  कटलौं  हम ||
||

                                             रचनाकार - अभय दीपराज

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