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पालपोस के बड़का कईनी ,
हम इ गजब का कर देहनी ,
दहेज ज्वाला में जलत बनी ,
जनमते कहे ना मुआ देहनी ,
सोचनी बेटी आउर बेटा में ,
अब कवनो अंतर नइखे ,
खुबे पढ़ावनी औकात से बेसी ,
उनका के सी एस कर देनी ,
घुमात बनी जात में आपना ,
हम इ गजब का कर देहनी ,
बेटी के आमद अच्छा बाटे ,
चाहे लाईका बोक्का बाटे ,
मांग दहेज के खुबे होता ,
संग में चाही चाँदी के लोटा ,
बाहुआ आई खूब पढ़ल लिखल ,
ओकरा खातिर कार मांगता ,
रह ना पाई उ नार्मल घर में ,
एसी भी चाही इहो सुनाता ,
हमरा मन बात एगो आइल ,
लाईका पक्छ के सामने धराइल ,
राउआ के हम सब कुछ देहब ,
कार का संग में सोना देहब ,
इ राउआ बोंड करे के पड़ी ,
बेटी जवन हामार कमाई ,
उ हमके राउआ देबे के पारी ,
जोड़े लागले हिसाब उहो ,
सब एक बारिस में आ जाई ,
कहले फ्री में शादी करब ,
राउआ दिही जवन बुझाई ,
पाहिले सोचनी ना कर दिही ,
मज़बूरी में हा कर देहनी ,
अब लागत बाटे भाई हमारा ,
पढ़ा के काम हम अच्छा कईनी ,

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Replies to This Discussion

गुरूजी राउर इ कविता दो चीज़ के दर्शा रहल बा .....पहला की दानव रूपी दहेज़ और दूसरा जिंदगी में शिक्षा के महत्व .मतलब की अगर शिक्षा रुआ भी बा ता रुआ दहेज़ के आगोश में आवे से बच सकत बनी....शायद इहे तात्पर्य बा राउर कविता के .बहुत बढ़िया
गुरूजी धन्यवाद्
Hm padhe sabko padhaye. Sb shikshit ho. Shiksha kewal kitabi nhi, wyawharik ho.

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